निर्वासन था सिर्फ राम का
भोगा क्यों लक्ष्मण ने वनवास
सिया करे निर्वाह धर्म का
उर्मिला जिए विरह का पाश ।
भोगा क्यों लक्ष्मण ने वनवास
सिया करे निर्वाह धर्म का
उर्मिला जिए विरह का पाश ।
पुरुषोत्तम पूजे जाते राम
सीता एक सती कहलाई
विस्मृत हुआ लक्ष्मण नाम
उर्मिल गाथा गाई न गई ।
मर्यादा के प्रतीक हैं ये
जीवन मूल्यों की है थाती
पुरोधा संस्कारों के ये
है नैतिकता की पाती ।
आज जरुरत एक राम की
बलिहारी जाये पितृ वचन पर
प्रतीक्षा हमें है लाखन की
भेंट चढ़ जाए भाई प्रेम पर ।
सीता सी कोई पतिव्रता
सक्षम हो लाज बचाने में
असुरों का जो विनाश करे
प्रतिमान समाज चलाने में ।
उर्मिला है इन सबसे ऊपर
ऊँचा हैं उसका बलिदान
परित्यक्त जीवन जिया उसी ने
देकर मौन प्रेम प्रतिदान .
सीता एक सती कहलाई
विस्मृत हुआ लक्ष्मण नाम
उर्मिल गाथा गाई न गई ।
मर्यादा के प्रतीक हैं ये
जीवन मूल्यों की है थाती
पुरोधा संस्कारों के ये
है नैतिकता की पाती ।
आज जरुरत एक राम की
बलिहारी जाये पितृ वचन पर
प्रतीक्षा हमें है लाखन की
भेंट चढ़ जाए भाई प्रेम पर ।
सीता सी कोई पतिव्रता
सक्षम हो लाज बचाने में
असुरों का जो विनाश करे
प्रतिमान समाज चलाने में ।
उर्मिला है इन सबसे ऊपर
ऊँचा हैं उसका बलिदान
परित्यक्त जीवन जिया उसी ने
देकर मौन प्रेम प्रतिदान .
Kya khub likha hai ati uttam
ReplyDeleteapne sahi likha hai ke urmila ka dukh kisi ne nahi jana. apne sahi question uthaya hai
बहुत अच्छा लिखा है...बधाई
ReplyDeleteउर्मिला के त्याग की चर्चा रामायण में नहीं की गयी उसे वो स्थान और मान ही नहीं दिया जिसकी वो हकदार थी...उसके साथ ना इंसाफी की गयी जबकि उर्मिला का त्याग सीता से भी बड़ा है...
ReplyDeleteआपकी रचना अप्रतिम है...बधाई स्वीकारें.
नीरज
bahut hi badhiyaa
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर
अनेक mythological चरित्र ऐसे हैं ,जिन्हें पर्याप्त श्रेय नहीं मिल सका है ,उर्मिला भी ऐसी ही उपेक्षिता रही हैं .
ReplyDeleteआपने उर्मिला के दर्द को अभिव्यक्त करने का सराहनीय काम किया है .
अनुरोध है कि ऐसे ही अन्य चरित्रों पर भी लिखें .
गूढ़ मनस में उर्मिला के,
ReplyDeleteकितना भारी दान छिपा है,
अपनों का अभिमान छिपा है।
सच कहा आपने उर्मिला का मौन बलिदान भुलाया नहीं जा सकता . बेशक कहीं शास्त्रों में उसका बखान ना किया हो...लेकिन मन से सभी मानते हैं. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत सटीक भाव ...आपकी कविता पढ़ मैथिली शरण गुप्त कि साकेत याद आ गयी ...उर्मिला के त्याग को लोगों ने नज़र अंदाज़ किया ..
ReplyDeleteबहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति
नीरज जी से सहमत
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन लेखन..रचना अच्छी लगी.
ReplyDeleteकई सवाल खड़े करती है आपकी रचना
ReplyDeleteमुझे तो बहुत ही अच्छी लगी
मेरी बधाई स्वीकारें
उर्मिला की वेदना को बखूबी उकेरा है………………बहुत ही सुन्दर रचना।
ReplyDeleteमैने भी इसी विषय पर लिखी थी एक रचना----------उर्मिला की विरह वेदना।
आपने भी गज़ब का लिखा है।
bhai mere aise kai patra hai jo gumnam hai lekin jiski charcha nahi hoti urmila mira inka tyag to bhagwan bhi salam kare urmila to sakshta ma sati hai jo bina kucha kahe apna dharma nibhati hai aise ma ko mera karodo karodo salam
ReplyDeletebhaskar