Monday, September 13, 2010

चाँद दूर क्यों

बीत गया पाख अँधियारा
फैला दो विश्व उजियारा
चाँदी के चश्मे से देखो
ये जग है कितना प्यारा ।

चाँद और सूरज दो भाई
करते सृष्टि की अगुवाई
सब पर पहरा देते मौन
कौन जागता सोता कौन ।

चंदा मेरे हमराज तुम्हीं
सखा मेरे सरताज तुम्हीं
बोलो भी क्यों रूठे हो
इतनी दूर जा बैठे हो ।

झरोखे पर आ बैठूं मैं
साँझ न काटे कटती है
कब आओगे निर्मोही
कि गंगा जमुना बहती है ।

पल बीते और दिवस गए
जन्मों तक करूँ अनुराग
नाथ मेरे तक कब पहुंचेगी
इस व्याकुल ह्रदय की पुकार .

चाँद तुम इतनी दूर हो क्यों
क्यों शीतलता में तड़प भरी
पागल प्रेमी के साथ हो क्यों
क्यों प्रेम में इतनी अगन भरी।

11 comments:

  1. पल बीते और दिवस गए
    जन्मों तक करूँ अनुराग
    नाथ मेरे तक कब पहुंचेगी
    इस व्याकुल ह्रदय की पुकार .
    वाह ,वाह -बधाई भावप्रवण कविता के लिए .

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  2. आपकी रचना में भाषा का ऐसा रूप मिलता है कि वह हृदयगम्य हो गई है।

    बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    शैशव, “मनोज” पर, आचार्य परशुराम राय की कविता पढिए!

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  3. चंदा मेरे हमराज तुम्हीं
    सखा मेरे सरताज तुम्हीं
    बोलो भी क्यों रूठे हो
    इतनी दूर जा बैठे हो ।
    Best lines... Congrats...

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  4. ओह....अतिसुन्दर...
    मन मोह लिया आपकी इस अनुपम रचना ने....
    भाव प्रवाह शब्द संयोजन...सब लाजवाब हैं...
    बहुत ही सुन्दर इस रचना को पढवाने के लिए बहुत बहुत आभार...

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  5. चंदा मेरे हमराज तुम्हीं
    सखा मेरे सरताज तुम्हीं
    बोलो भी क्यों रूठे हो
    इतनी दूर जा बैठे हो ।
    waah

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  6. सुन्दर रचना!


    हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!

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  7. बहुत सुन्दर भाव्।

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  8. प्रेम की अग्नि बड़ी तीक्ष्ण होती है।

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  9. ... bahut sundar ... prasanshaneey rachanaa, badhaai !!

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