Friday, September 3, 2010

कहीं कोई चिट्ठी

खुशबू तुम्हारी
महका रही है
हंसी की गूँज
गुदगुदा रही है .

तुम्हारी आँखों में
लाज के डोरे
खींचे अपनी ओर
मुझको बुला रहे हैं .

कलाई में बजता
कंगन का जोड़ा
कानो में मेरे
गीत गा रहे हैं .

गालों पर उड़ते
वो आवारा गेसू
लगता है जैसे
मुझको चिढ़ा रहे हैं .

कागज पे तेरा
छुप छुप के लिखना
कहीं कोई चिट्ठी
मेरे गाँव आ रही हैं .

14 comments:

  1. सुंदर भावाव्यक्ति बधाई

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  2. कागज पे तेरा
    छुप छुप के लिखना
    कहीं कोई चिट्ठी
    मेरे गाँव आ रही हैं .


    -बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!

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  3. कहीं कोई चिट्ठी
    मेरे गाँव आ रही हैं ...
    kya hai us pyaari se chiththi me , mujhe bhi intzaar hai

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  4. aapke bhaa unka shbdon me dhaal kr blog men prstutikrn unkaa chitrn bhut khub he bdhayi ho. akhtar khan akela kota rajsthan

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  5. ग़ालिब का एक शेर था, ठीक से याद नहीं आ रहा है, सरल भाषा में अर्ज है :
    डाकिये के आने तक एक ख़त और तैयार कर लूं,
    मैं जानता हूँ, वो क्या लिखने वाले है जवाब में !

    कागज पे तेरा
    छुप छुप के लिखना
    कहीं कोई चिट्ठी
    मेरे गाँव आ रही हैं .

    बढिया अभिव्यक्ति ...

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  6. चिठ्ठी से अधिक उसकी प्रतीक्षा गुदगुदाती है।

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  7. अरे वाह बहुत बढ़िया मित्र...

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  8. गालों पर उड़ते
    वो आवारा गेसू
    लगता है जैसे
    मुझको चिढ़ा रहे हैं .
    इसमें चित्रात्मकता बहुत है। आपने बिम्बों से इसे सजाया है। क्षुष बिम्ब का सुंदर तथा सधा हुआ प्रयोग।

    फ़ुरसत में .. कुल्हड़ की चाय, “मनोज” पर, ... आमंत्रित हैं!

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  9. बहुत सुन्दर भावो से भरी रचना।

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  10. सुन्दर भाव ...अब तो चिट्ठी का इंतज़ार भी खत्म हो गया है

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  11. शिक्षक दिवस की बधाई

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