धुंआ
ऊपर की ओर ही
जाता क्यों है
विज्ञान कहेगा
हवा से हलके होने के कारण
किसी प्रेम करने वाले
ह्रदय से जब पूछोगे
कहेगा आग में
जल कर देखो
कभी मिटाने के लिए भूख
कभी कुंदन करने के लिए सोना
कभी बनाने के लिए इस्पात
कभी प्रेम में किसी के ,
ऊपर ही उठोगे
सभी सीमाओं से ऊपर
प्रेम
ऊपर ही उठाता है
जब भी देखना अब
धुआ
समझना जरुर होगी आग कहीं
चूल्हे में
भट्टी में
दिल में
बदल लो नजरिया
धुंए के प्रति
EK ALAG BHAAW KEE KAVITAA HAI. BADHAAI.
ReplyDeleteकिसी प्रेम करने वाले
ReplyDeleteह्रदय से जब पूछोगे
कहेगा आग में
जल कर देखो
कभी मिटाने के लिए भूख
कभी कुंदन करने के लिए सोना
कभी बनाने के लिए इस्पात
कभी प्रेम में किसी के ,
ऊपर ही उठोगे
सभी सीमाओं से ऊपर
प्रेम
ऊपर ही उठाता है.......superb
बहुत सुन्दर भाव ..
ReplyDeleteसुन्दर कविता .
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (6/9/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
धुँये ते प्रति सबका अलग नज़रिया है पर धुँआ तो धुँआ हो गया।
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना के लिये बधाई !
ReplyDeleteआपसे ऐसी सशक्त रचना की ही उम्मीद होती है.
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