Wednesday, September 29, 2010

दीपशिखा

जीवन में है गति प्रखर
गतिमान हो बढते जाना है
टेढ़े रस्ते कुछ कठिन डगर
लक्ष्य लक्ष्य को पाना है ।

हमराही मिलते हैं कितने
कुछ दूर चले फिर छूट गए
अनजान सफ़र ठांव इतने
क्यों ठहरे सपने टूट गए ।

मैं चला अकेला अलबेला
संग तुम्हारी याद लिए
तपती मुश्किल राहों पर
शीतल सी तुम्हारी छवि लिए ।

अँधेरे और असमतल पथ पर
सहज हो मैं बढ़ जाता हूँ
दीपशिखा सी आगे चलती
सम्मोहित सा पीछे आता हूँ ।

साथ बिताये दुर्लभ पल
सौगात मेरी है पूँजी प्रिय
संजीवनी सी बहती अविरल
जीऊँ सरस तुम संग प्रिय ।

वामांगी बन रहो मेरी
नहीं विधाता ने चाहा
बनकर अखंड ज्योति मेरी
प्रकाशित मन में मैंने चाहा ।

Monday, September 27, 2010

विस्मय

सृष्टि की जननी बनकर
है सृष्टा का भेस धरा
वृहत वसुंधरा से बढ़कर
रचयिता ने शरण स्वर्ग भरा ।

माँ कहलाई महिमा पाई
ममता दुलार लुटाती हो
देवों ने भी स्तुति गाई
हर रिश्ते से गुरुतर हो ।

सहोदरा सा रूप मनोरम
छवि अपनी कितनी सुखकर
दो बोल स्नेह भरे अनुपम
लाज बचाने आये ईश्वर ।

भरी पड़ी धरती सारी
सीता जैसी सतियों से
अनुसूया और गार्गी तारी
इस जग को असुरों से ।

इतिहास साक्षी है अपना
अवतरित हुईं दुर्गा कितनी
रानी झाँसी सी वीरांगना
मीरा सी जोगन कितनी ।

कनिष्ठा पर गोवर्धन उठाये
कान्हा कितने इतराते हैं
बरसाने वाली उन्हें नचाये
संग लय ताल ठुमकते हैं ।

हर रूप तुम्हारा रहे अनूप
तुम अनुकरणीय पथगामिनी
युग बदला तुम रहीं अनुरूप
अल्पज्ञ जो कहते अनुगामिनी ।

नारी विस्मय रूप तुम्हारा
नमन करे यह जग सारा
भोर मुखर ले दीप्त सहारा
निशा ढले पा मौन पसारा .

Sunday, September 26, 2010

कन्या

कन्या
नहीं मिल रही
का शोर
कानों में पड़ा
मुझे लगा क्या
नवरात्र
शुरू हो गए है ।

इन्हीं दिनों में
होती है
इनकी पूजा
देवी बनाकर
बाकी वर्ष भर
कोई नहीं लेता
इनकी सुध ।

आज भरे है
अखबार
सेलिब्रिटीस की
बेटियों के
गुणगान से
डाटर्स डे है आज ।

खास अवसरों
पर ही होती है
इनकी खोज
बाकी जीवन
तो यों ही
गुमनामी के
अंधेरों में
दम तोड़ देता है ।

अक्सर
शिक्षित माता पिता ही
दिखाई देते है
महिला डाक्टर
से करते विनती
कन्या भूर्ण हत्या के लिए ।

जनसँख्या
में घट रहा है
अनुपात
बेटियों का
चिंताजनक रूप से ।

सरकार
को लानी
पड़ रही हैं
स्कीमें
देने पड़ रहे हैं
प्रलोभन
बेटी बचाओ
इसे भी जीने दो ।

माँ के गर्भ
में आने
से लेकर
शिक्षा कैरियर
और शादी तक
सब निशुल्क ।

फिर भी
नहीं तैयार
कोई पिता
बनने को
पालक पुत्री का ।

Thursday, September 23, 2010

निर्वासन

रामलला
अपनी ही माँ
को "माँ " पुकारने
के लिए
माँगा जा रहा है
तुमसे तुम्हारे
जन्म का प्रमाण ।

कितने डी एन ए टेस्ट
से गुजरोगे
अपने ही घर में
आने के लिए
पार करनी होगी
कितने निर्दोषों के
रक्त की वैतरणी
जिन्हें तुम्हारे नाम पर
चढ़ा दिया गया बलि ।

सूर्यवंशियों के
शौर्य में नहीं है
सूर्य की चमक
शांत सरयू भी
नहीं दे पा रही
कोई साक्ष्य
जहां जल समाधि
ली थी तुमने ।

फैसले की
नंगी कटार
लटकी है
तुम्हारे सिर पर
ठीक उसी तरह
जैसे ली थी तुमने
अग्नि-परीक्षा
सीता की ।

कभी रखने को
पिता का वचन
माँ के
एक इशारे पर
काटा था वनवास
आज फिर
भोगना है तुम्हें
निर्वासन
तय नहीं जिसकी
अवधि ।

लेकिन पुरुषोत्तम
ना तो तब
मानस के ह्रदय से
निर्वासित हुए थे तुम
ना ही
अब हो पाओगे ।

Wednesday, September 22, 2010

आह ! पानी

तूफ़ान उड़ा कर ले गया
मेरे घरौंदे की छत को
जल मग्न कर गया
मेरी आशा और सपनों को .

बेबस देखती मैं रह गई
करूँ क्या कुछ सूझा नहीं
प्रकृति की भ्रकुटि तनी हुई
बचाऊँ क्या कुछ बचा नहीं .

पलायन परोस रहा पानी
नदियों में उफनता हाहाकार
सच लगे कि दुनिया है जानी
देख मेघों का प्रबल प्रहार .

इन्द्रदेव क्यों रुष्ट हुए
पानी पानी कर दिया जगत
तनिक रुको सब पस्त हुए
जन जीवन है हुआ त्रस्त .

यमुना तट पर ठगी खड़ी
चिन्ह न शेष ठिकाने का
तांडव लहरें उठती गिरती
पानी भी सूख गया आँखों का .

Monday, September 20, 2010

विकल्प

तीसों पहर सोच में बीते
सपना कैसे होगा साकार
किया था वादा दिन बीते
कैसे लेगा वह आकार ।

प्रयास समर्थता से बढ़कर
इष्टदेव को साथ लिए
बनूँ मैं उनका अवलंबन
ले हाथों में हाथ लिए ।

लोचन झिलमिल से भर जाए
आकाश सिमट आये आँचल में
धरा भी फूली नहीं समाये
स्फुटित हो नीलकमल मन में ।

देने को अनुपम उपहार
जैसा किसी ने दिया न हो
हर लेने को हर अवसाद
ऐसा किसी ने हरा न हो ।

होते हैं विरले तुम जैसे
औरों की ख़ुशी में जीते हैं
तजकर अपने निज सुख को
बन नीलकंठ विष पीते हैं ।

अतुल्य अनूठे अलग से हो
उपमा मैं तुम्हारी दूं किससे
विकल्प न कोई तुम्हारा हो
छवि मात्र तुम्हारी हो जिसमें ।

Saturday, September 18, 2010

स्वीकार नहीं भीख

छोटे बड़े
अनगिनत
अभावों के बीच
रहना सीख लिया था
मैंने ।

अब नहीं
खलती थी
कोई कमी
नींद भी
आ ही जाती थी
तमाम कमियों के बीच ।

अपनी हालत
पर आती थी
हंसी
जो पहले नहीं आयी कभी
खुद को
जीत लिया था
मैंने ।


अचानक
बहुत सा
अपनापन मिला तो
लगा कुबेर हो गई हूँ मैं
इतना अमोल धन
कहाँ रखूँ
कैसे सम्भालूँ
इसे ओढूं कि बिछाऊँ
मेरा आँचल
न हो जाए
तार तार
इसके बोझ से ।

जानती हूँ
मैं नहीं सुपात्र
नहीं मेरा कोई अधिकार
मन है न
बेईमान हो जाता है
हँसता है
मेरे उसूलों पर
मजाक उडाता है
मेरी नैतिकता पर
चिन्दियाँ बिखेर देता है
मेरे स्वाभिमान और
मेरी अस्मिता की ।

फिर सुनी
एक आवाज़
छोटी सी हंसी के साथ
'कभी पाया है
इतना प्यार
कभी देखी है
इतनी ख़ुशी '
लगा
तुमने दी है
मुझे भीख
अपने प्यार की
स्नेहसिक्त अभिसार की ।

रह लूंगी
तमाम अभावों के बीच
लेकिन
सोच में विकृति से साथ
नहीं है स्वीकार
मुझे
यह भीख ।

देखो
मैं फिर से
हंसने लगी हूँ ।

Friday, September 17, 2010

उर्मिला

निर्वासन था सिर्फ राम का
भोगा क्यों लक्ष्मण ने वनवास
सिया करे निर्वाह धर्म का
उर्मिला जिए विरह का पाश ।


पुरुषोत्तम पूजे जाते राम
सीता एक सती कहलाई
विस्मृत हुआ लक्ष्मण नाम
उर्मिल गाथा गाई गई

मर्यादा के प्रतीक हैं ये
जीवन मूल्यों की है थाती
पुरोधा संस्कारों के ये
है नैतिकता की पाती ।

आज जरुरत एक राम की
बलिहारी जाये पितृ वचन पर
प्रतीक्षा हमें है लाखन की
भेंट चढ़ जाए भाई प्रेम पर ।

सीता सी कोई पतिव्रता
सक्षम हो लाज बचाने में
असुरों का जो विनाश करे
प्रतिमान समाज चलाने में ।

उर्मिला है इन सबसे ऊपर
ऊँचा हैं उसका बलिदान
परित्यक्त जीवन जिया उसी ने
देकर मौन प्रेम प्रतिदान .

Wednesday, September 15, 2010

मन में आस

पूरब में सूरज की लाली
देख प्रियतम हर्षाये
उगते सूर्य की तरुनाई
मन में आस जगाये

सर सर बहती ठंडी हवाएं
तन मन दोनों सिहराए
भोर में करते खग कलरव
धीमा मीठा संगीत सुनाये

आँगन में अनमन सी फिरूँ
पायल की रुनझुन न भाए
अँखियाँ राह पे टंगी हुई
मेरी चूनर सरकी जाये

खड़ी अटारी जिसे निहारूं
वे तो नजर न आये
कहाँ छिपे मनमीत मेरे
दिल का चैन चुराए .

Tuesday, September 14, 2010

रसवंती हिंदी

स्वाद प्रसार बहुत है
रसभाषा रसवंती
ऋतुओं में वासंती है यह
रागों में मधुवंती
भाषाएँ हो चाहे जितनी
यह सबकी हमजोली
स्वागत करती हिंदी सबका
बिखरा कुमकुम रोली .

हिंद की है आत्मा
पहचान हिंदुस्तान की
बनकर लहू है दौड़ती
नब्ज हिंदुस्तान की
राज करती है दिलों पर
हैं लाखों चाहने वाले
खूबसूरत है बयानी
मानने लगे हैं दुनिया वाले .

एकछत्र हो साम्राज्य
सबको रेशम डोर बांधती
जो कुछ संकोच हो कहने में
रसिया सी सब कह जाती
कितनी बोली कितनी भाषा
इतनी सुमधुर कोई और नहीं
कितना भी उन्नत हो जाए
हिंदी जैसी कोई मणि नहीं .

देश के रोम रोम में
अनगिनत भाषा बोली
बड़ी बहन सा व्यवहार
सब भाषा की है सहेली
संस्कृति की पहचान यही
यही है देश की धड़कन
मान रखें सम्मान करें
आओ करे हम इसे नमन

Monday, September 13, 2010

चाँद दूर क्यों

बीत गया पाख अँधियारा
फैला दो विश्व उजियारा
चाँदी के चश्मे से देखो
ये जग है कितना प्यारा ।

चाँद और सूरज दो भाई
करते सृष्टि की अगुवाई
सब पर पहरा देते मौन
कौन जागता सोता कौन ।

चंदा मेरे हमराज तुम्हीं
सखा मेरे सरताज तुम्हीं
बोलो भी क्यों रूठे हो
इतनी दूर जा बैठे हो ।

झरोखे पर आ बैठूं मैं
साँझ न काटे कटती है
कब आओगे निर्मोही
कि गंगा जमुना बहती है ।

पल बीते और दिवस गए
जन्मों तक करूँ अनुराग
नाथ मेरे तक कब पहुंचेगी
इस व्याकुल ह्रदय की पुकार .

चाँद तुम इतनी दूर हो क्यों
क्यों शीतलता में तड़प भरी
पागल प्रेमी के साथ हो क्यों
क्यों प्रेम में इतनी अगन भरी।

Saturday, September 11, 2010

कौन हो तुम

गुलाब के पराग सी
आभा गुलाबी

सूरज के प्रकाश सी
रक्तिम लाली

नदी के प्रवाह सी
चंचल इठलाती

चंदा की चांदनी सी
शीतलता फैलाती

सुवासित रजनीगंधा सी
खुशबू बिखराती

मंद मलय सी
कानों में फुसफुसाती

आहलादित मयूरी सी
देख मेघा नाचती

इन्द्रधनुष सी
रंगों को दुलारती

झीनी दीपशिखा सी
मार्ग को दिखाती

लगती अपनी सी
राह निहारती

भोर की किरण सी
ऊर्जा भर जाती

भावों की सम्मोहना सी
खींचे लिए जाती

बूढी पुजारिन सी
बिन कहे समझ जाती

कौन हो तुम
पहेली बूझी न जाती .

Friday, September 10, 2010

तुम्हारे स्पर्श से

शिशु हूँ मैं
थामकर तुम्हारी उँगलियाँ
चढ़ना चाहता हूँ
जीवन की सीढियां ।

अबोध की तरह
अक्षर बोध कराओ मुझे
ताकि समझ सकूं
दुनिया की समझ ।

एक युवा के
सपनों की तरह
आत्मविश्वास से पूरित
छूना चाहता हूँ आकाश ।

एक पुरुष की तरह
अनुप्रिया बनाना चाहता हूँ
ताकि बाँट सकूं तुमसे
भावों का अतिरेक ।

एक वृद्ध की तरह
स्मरण करना चाहता हूँ
थरथराते हाथों से
ज्यों आराध्य हो तुम ।

एक आसक्त की तरह
सम्पूर्ण होना चाहता हूँ
देकर समर्पित समर्पण
तुम्हारे स्पर्श से .


Thursday, September 9, 2010

अनामिका

नीम अँधेरे सूने घर में
किलक उठी किलकारी
रात अमावस की कालिख में
दीप्त हुई उजियारी ।

मंगलगीत न बजी बधाई
सौगातों का अम्बार न आया
धूमिल छाया जननी पर छाई
सन्नाटों का गुबार है आया ।

किलोल कलरव गुंजित गुंजन
नीरवता कोसों दूर चली
कोना खाली करता मनन
चुपचाप है जीवन नाव चली ।

घर मेरा नहीं पराई हूँ
दैनिक मंत्र जाप था यह
माँ अपनी की कोख जाई हूँ
पराया धन कैसा है यह ।

समय चक्र की गति अविरल
विस्थापित कर दी गई मूल से
नया देस है नया गरल
मुस्कान भा गई मुझे भूल से ।

न जन्मभूमि ने अंक लगाया
ये पूछे कौन देस से आई
जिस आश्रय ने ठौर बिठाया
अपनी निज गरिमा न आई ।

क्या नाम मेरा पहचान मेरी
किस धरा पे खुद को स्थिर करूँ
बसना और बिखरना नियति मेरी
किस सूरज को अचवन मैं करूँ ।

बाबुल की लाडो न रही
प्रिया बनी न अपने पी की
भटकूँ वन-वन पुकार रही
कैसे खोजूं जो अनाम रही ।

Tuesday, September 7, 2010

आसान है ईश्वर होना

ईश्वर होना
बहुत आसान है
क्योंकि
वहां होना होता है
सभी संवेदनाओं से परे
सभी भावनाओं से ऊपर
और कष्ट देती हैं
यही संवेदनाएं
यही भाव

अच्छा है ईश्वर
हो तुम
सभी प्रभावित करने वाले
भावों से ऊपर

लेकिन
मेरे ईश्वर
ए़क बार मेरे ह्रदय में
देखो करके वास
जान जाओगे तुम
प्रेम करना
अधिक कठिन है
ईश्वर होने से

Saturday, September 4, 2010

बदल लो नजरिया धुंए के प्रति

धुंआ
ऊपर की ओर ही
जाता क्यों है
विज्ञान कहेगा
हवा से हलके होने के कारण


किसी प्रेम करने वाले
ह्रदय से जब पूछोगे
कहेगा आग में
जल कर देखो
कभी मिटाने के लिए भूख
कभी कुंदन करने के लिए सोना
कभी बनाने के लिए इस्पात
कभी प्रेम में किसी के ,
ऊपर ही उठोगे
सभी सीमाओं से ऊपर
प्रेम
ऊपर ही उठाता है

जब भी देखना अब
धुआ
समझना जरुर होगी आग कहीं
चूल्हे में
भट्टी में
दिल में

बदल लो नजरिया
धुंए के प्रति

Friday, September 3, 2010

कहीं कोई चिट्ठी

खुशबू तुम्हारी
महका रही है
हंसी की गूँज
गुदगुदा रही है .

तुम्हारी आँखों में
लाज के डोरे
खींचे अपनी ओर
मुझको बुला रहे हैं .

कलाई में बजता
कंगन का जोड़ा
कानो में मेरे
गीत गा रहे हैं .

गालों पर उड़ते
वो आवारा गेसू
लगता है जैसे
मुझको चिढ़ा रहे हैं .

कागज पे तेरा
छुप छुप के लिखना
कहीं कोई चिट्ठी
मेरे गाँव आ रही हैं .

Thursday, September 2, 2010

राधा कृष्ण


ना तुम
कृष्ण
ना मैं
राधा
फिर भी
तेरे बिन
मैं आधी
मेरे बिन
तुम आधा



ना मैं
गोपी
ना तुम
कन्हैया
फिर भी
कैसे तुम
बन गए
मेरे मन के
खेवैया

नहीं तुझमे
सोलह कला
ना ही मुझमे
कोई चमत्कार
कहो ना
फिर भी
क्यों करते हैं हम
राधा कृष्ण सा प्यार