Monday, May 28, 2012

लगता है कुछ तुम सा


(चित्र गूगल से साभार )

 
स्मृति की सीप से 
एक मोती है उपजा 
स्निग्ध श्वेत धवल 
लगता है कुछ तुम सा


स्नेह का पल्लव 
लाने को है आतुर सा 
प्रीत का पुष्प 
लगता है कुछ तुम सा



बिछोह के घन 
भर देते हैं तम सा 
जरूर बरसेगा अनुराग
लगता है कुछ तुम सा


लिए कुटिल मुस्कान
निराशा की निशा 
होगा आशा का सवेरा 
लगता है कुछ तुम सा


सपनों का पुलिंदा 
प्रतीक्षा में  कसमसाता 
कभी तो होगा सच 
लगता है कुछ तुम सा



नभ में सरकता चंदा 
मेरे आँगन जो पहुंचा
करता है ताक-झांक 
लगता है कुछ तुम सा



गौरैया का भोर गान 
गुनगुन भ्रमर सा 
पिहू पिहू पपीहा 
लगता है कुछ तुम सा


मंदिर में मंत्रोच्चार 
ईश्वर उसमें बसा 
शंख का जय गान 
लगता है कुछ तुम सा .

Tuesday, May 1, 2012

पृथ्वी थकती नहीं


(चित्र गूगल से साभार )


गतिमान है  धुरी पर 

परिक्रमा करनी है पूरी 

प्रहर गिनती पोरों पर

कहीं दूर न हो  दूरी



गर्भ में बैठे मानिक मोती 

एक दूजे से बतियाते हैं 

धीर धरा हमको ढोती

तभी अमूल्य कहाते हैं



दिखती कितनी शान्तमना

धधकता भीतर ज्वालामुखी 

जल का अपार सैलाब बना 

माथे हिमगिरि पर न दुखी 



बनी सारथि सृष्टि की 

सृष्टा का आधार हो तुम 

वाहिनी बनी चराचर की 

कंचन सी कल्पना तुम



पल पल पल्लवित जीवन

जीने की उमंग तुमसे  

तुम हो कितनी पावन 

धर्म कर्म परिभाषा तुमसे 



देवों ने भी जन्म लिया 

आँचल में छिप जाने को 

ममता का मीठा भोग दिया

मठ में पूजे जाने को 



आज धरा है तार तार 

लहू से लहूलुहान हुई 

मानवता सिसके द्वार  

अपनों से ही बर्बाद हुई 



आस लगाये धैर्य धारिणी 

धानी चूनर खोएगी नहीं 

अमन चैन की खेवन हारिणी

पृथ्वी कभी थकती नहीं .