Tuesday, December 20, 2011

कठिन रास्ते





हर राह 
करे इन्तजार 
ले जाने को 
सदैव तैयार 

कुछ हल्के 
भारी भरकम 
कहीं लम्बे 
दूरी के कम 

साथ निभाते 
मंजिल तक 
लौट भी जाते 
आखें ढक

करते तय 
सांझ ढले 
आना कल 
अब मिले गले 

आसान नहीं 
रास्ता एक 
मुश्किलें कई 
राजा या रंक 

कठिन रास्ते
एक चुनौती 
जाना उस पर 
हंसी बिखराती 

मील का पत्थर 
तुम्हीं बनो 
राह से हटकर 
नयी राह गढ़ो.

Tuesday, December 13, 2011

घन छाये



















जेठ की तपती दुपहरी 
धरा थी शुष्क दग्ध 
मेघ आये ले सुनहरी 
पावस की बूंदे लब्ध 

संचार सा होने लगा
जी उठी जीवन मिला 
सोया हुआ पंछी जगा 
सुन पुकार कुमुद खिला

अंगार हो  रही धरती 
धैर्य थी धारण किए 
दहकती ज्वाला गिरती
अडिगता का प्रण लिए 

मुरझा गए पुष्प तरू  
मोर मैना थे उदास 
सोचती थी क्या करूँ 
जाए बुझ इसकी प्यास 

सूख गए नदी नार 
ताल तलैया गए रीत 
मछलियाँ पड़ी कगार 
गाये कौन सरस गीत 

टिमटिम उदासी का दीया  
आई ये कैसी रवानी 
हल ने मुख फेर लिया 
पगडण्डी छाई वीरानी    

घन छाये घनघोर बरस 
तृप्ति का उपहार लिए 
इन्द्रधनुष दे जाओ दरस 
रंगों का मनुहार लिए

Friday, December 9, 2011

धूप




सोने सा पराग बिखराती 
चंचल सी पीत रश्मियाँ
गहन कालिमा भी हर लेतीं 
लगती नन्ही तरुणियाँ

उज्जवल चादर का सिरा पकड़ 
यह आगे बढती जाती हैं 
फैला दे धवल चांदनी 
जग हर्षित करती जाती हैं 

एक झरोखे से आती 
छन कर छोटी प्यारी धूप 
ओस की बूँदें चुन लाती 
मुस्काती जाती छोटी दूब

गुनगुनी धूप का इक टुकड़ा 
दादी को बहुत लुभाता है
प्रतीक्षा में रहता मुखड़ा 
जब आती, खिल जाता है 

माँ भी तनिक पास आ जाती 
धूप से मिलने, अपनी कहने 
बीती घड़ियाँ लौट कर आती 
हर्षित करती, लगती बहनें 

धूप की आंच हर रिश्ते को प्रिय 
सुलझा  देती हर उलझन 
धागे में धागे हों चाहे 
मन में चुभी कोई उलझन 

काश कि मेरे वश में होता 
धूप को मुट्ठी में भर लेती 
जब दिखते मेरे प्रिय उदास 
चेहरे पर उजास भर देती