Sunday, May 30, 2010

कोयल

अमराई के झुरमुट में
कोकिल गाये मीठा कितना
पथिकों के पद थम जाए
आमों में भरती रस कितना ।

मौसम की पहली बारिश
उसकी याद दिलाती है
तू क्या जाने पगली कोयल
मन कितना तड़पाती है ।

कंठ में रहे छिपाए
भरपूर कसक का प्याला
बैरन तुम बिरहन की
परदेश बसा है मतवाला ।

कारी कोइलिया
बसो मोरे अंगना
कुहू कुहू करना
जब आयेंगे सजना ।

Friday, May 28, 2010

गृहप्रवेश

वर्षों के इन्तजार से जूझे
गृहप्रवेश का दिन आया
एक घरौंदे की आस मुझे
आज बहुत मन हर्षाया ।

तिनका तिनका जोड़ा हमने
अपना भी एक घर होगा
घर आँगन बगिया महकेंगे
खुशियों का रैन बसेरा होगा ।

छोटा सा अपना यह घर
कितना अपनापन लिए खड़ा
आओ मुझमें रच बस जाओ
स्वागत को उत्सुक रहे खड़ा ।

नीड़ मेरा पहचान मेरी
निज निजता बसती है इसमें
साथी मेरे सुख दुःख का
सपनों की दुनिया है जिसमें ।

नीले नभ की छावं तले
जग में यही ठौर भाये
दीवारों में एहसास पले
जीवन हर कोने बस जाये ।

इस द्वार से आयें मनभावन
गंगा जल से पैर पखारूँ
राह में पलकें बिछवा दूं
सबसे अनमोल चीज मैं वारूँ ।

Sunday, May 23, 2010

पहली बार

आलता लगे पांवों से
जब लांघी थी
तुमने
पहली बार
मेरे घर की
चौखट
लगा था मानो
महालक्ष्मी साक्षात्
चलकर आई है
मेरे आँगन में
क्षीरसागर से ।

रुनझुन रुनझुन
तुम्हारी
पाजेब की
घोलती है कानों में
मिसरी या
तानसेन ने
मेरे द्वार
छेड़ दिया हो कोई
मधुर राग

तुम्हारे
गेसुओं का मोगरा
महका गया था
मेरी सांसे
घटा बन
मेरी रातों पर
छा गया था
तुम्हारे मदभरे
नयनों का कजरा ।

बादलों के बीच
दूज
के चाँद
सा चेहरा
तुम्हारा
जब घूँघट की आड़
से निहारा था तुमने
मुझे
और पलकें
बोझिल हो गई
थी तुम्हारी
लाज से ।

तुम आई
मेरे जीवन में
लगा
एक ही पल में
जी ली हैं
सदियाँ मैंने
तुम्हारे साथ ।









Monday, May 17, 2010

तुम्हारी चूड़ियाँ

तुम्हारी चूड़ियों के जुगनू
मुझे रात भर जगाते हैं
तुम्हारी आँखों के सितारे
मेरे नयनों में झिलमिलाते हैं ।

आरजुओं की आंधी
मुझे उड़ा ले जाती है
तपते रेगिस्तान में
जलने को छोड़ जाती है ।

तुम्हारे गेसुओं के बादल
घुमड़ते गरजते हैं जरूर
मोती नेह के बरसाए बिना
गुजर जाते हैं लिए गुरूर ।

तुम्हारी हंसी की खनखनाहट
कानों में गुंजन करती है
युगल पंखुरी पर मुस्कान
स्पंदन ह्रदय में भरती है ।

प्रतीक्षा में तुम्हारी रहूँ विभोर
कल्पना सुवासित करती है
स्वर्णिम पल, तुम हो सम्मुख
यह सोच उल्लसित करती है ।

Thursday, May 13, 2010

लहरों के बीच

बहती नदिया उद्दात्त वेग
संकल्प उन्हें बहा ले जाऊं
डूबती उतराती लहरियां
उन्हीं में समाहित हो जाऊं ।

अति गति इन लहरों की
अपना अस्तित्व बचाऊं कैसे
इस बहुरूपिये समाज में
अपनी ठौर बनाऊं कैसे ।

जग में आने से अब तक
गाथा संघर्ष की संग हुई
हर पल मरना, तिल तिल जलना
कैसे मैं इतनी मुखर हुई ।

प्रस्थान है आगे की तैयारी
लहरों से लड़ती मनमानी
विपरीत दिशा में है जाना
मन में अब मैंने ठानी ।

उठता ज्वार इन लहरों का
अब मुझे डरा ना पायेगा
राह बनाऊं इनमें अपनी
निश्चय से डिगा ना पायेगा ।

उफनता राग उन्मत्त आभास
कलकल संगीत बनाऊँगी
लहरों से करती परिहास
संगम धारा बन जाऊंगी ।

Sunday, May 9, 2010

नीला नभ

नीला अम्बर नीलाम्बर का
है रस्ता सूरज चंदा का
दामन में जुगनू से तारे
चमचम करते कितने प्यारे ।

नीलाभ मनोहारी कितना
स्वर्ग सरीखा दिखता है
अनुपम सा इस पर इन्द्रधनुष
मुकुट रंगीला लगता है ।

बादल खेले आंखमिचौनी
सूरज संग हौले हौले
तेज हवा ने आँख दिखाई
बदरा उड़कर आगे हो ले ।

आशाओं की बदरी बन
जब मेघ बरसते हैं घनघोर
प्यासी पृथ्वी की प्यास बुझा
मुरझाये मन में उठे हिलोर ।

बतियाता संग चांदनी के
पक्षी संग गाता है गीत
साँझ ढले धरती संग मिलता
जैसे उसका हो मनमीत ।