Wednesday, February 22, 2012

मोम


 
 

 
मोम की गुड़िया बनाई
विधना ने अपने हाथ
फिर उसकी की बिदाई  
देकर किसी का साथ
 
कोमल वह सकुचाई सी
आगे था सारा संसार
चले जरा शरमाई सी
कैसे हो भवसागर पार
 
लघु तरू नन्हा अंकुर
बहने को जल प्रपात
कैसे अपने प्राण बचाऊँ
ढहाने को है झंझावत
 
तिनके का लिया सहारा
उतर गई वह पार
पत्थर में प्राण फूंकें
करती सबका उद्धार
 
एक लचीले  पिंड में
किसने भरी उर्जा इतनी
जा बैठी देवालय में
इसमें आई शक्ति कितनी
 
देव का वरदान है
या ममता की कुंजी
प्रेम का भण्डार है
या  शीलता की पूँजी
 
मोम को शिला बनाया
आज के हालात ने
हंसती है न रोती है
जीती है बियाबान में .    

Friday, February 17, 2012

ओस


 
बन  ओस की निर्मल बूँद
बरस गए मेरी बगिया
हर पंखुरी आँखें मूँद  
करती आपस में बतियाँ
 
भोर हुई आया अरुणाभ
चुन चुन उनको ले भागा
सुन्दर , शीशे सा तन
देख पुलक चहके कागा
 
पलाश ने लाली मांगी
थोड़ी सी तुमसे उधार
रजनी भी हुई सुवासित
तुमसे लेकर गंध अपार
 
दौड़ी आती है पुरवाई
लेकर तुम्हारा ही सन्देश
कहो प्रिय कैसी हो तुम
पिया भए हैं बहुत विकल
 
गौरैया का नन्हा जोड़ा
गुमसुम है मुझे देख उदास
कहो कौन सा गीत सुनाऊं
भर दे जो नैनन उजास
 
मोहे तनिक पास बुला लो
करता विनय सुर्ख गुलाब
सारे शूल मैं तज दूंगा
रखना अधरों पर मेरी आब .


Friday, February 10, 2012

सृजन के बीज

अपने आँगन की क्यारी में
बीज सृजन के मैंने बोये
गर्भ गृह में समा गया क्या
सोच सोच कर मन रोये ।

एक सुबह देखा मैंने
पाषाण धरा को चीर
बाती सा एक अंकुर
मुस्काया, हरी मेरी पीर ।

मैं रोज सींचती ममता से
था उल्लास नहीं खोया
सर सर समीर झुलाती उसको
जैसे अबोध शिशु हो सोया ।

आस थी कब पल्लवित होगा
कब आयेंगे उस पर फल
मेरे हर्ष का पार न होगा
मेरी सृजना हो जाये सफल ।

कैसा था वह सुखद प्रभात
जब कली ने आँखें खोली
दुलराती उसको देख देख
इतराई मैं, वह थी अलबेली ।

अंतर में कितने पराग लिए
इसका उसको भान ना था
साथ में थे मेरे सपने
उसे जरा अभिमान ना था ।

पुष्प खिला उपहार मिला
मेरे जीवन में आया वसंत
तितली बोले, मधुकर डोले
आम्र बौर कितनी पसंद ।

किसको दूं यह कुसुम सुगन्धित
खुशबू जिसमे रच बस जाए
डाली से कोई दूर ना हो
इच्छा, यहीं अमर हो जाए ।