Tuesday, October 25, 2011

कैसे दीप जलाऊं मैं











चहुँ ओर तिमिर का घन
कैसे दीप जलाऊं मैं
कुछ छंट जाये होवें कम
थोड़े जुगनू ले आऊं मैं


ममता की आँखें पथराई
कैसे दीप जलाऊं मैं
बेटा दंगों की भेंट चढ़ा
सद्भाव कहाँ से लाऊं मैं


निरक्षरता है पाँव पसारे 
कैसे दीप जलाऊं मैं
भुखमरी गरीबी करती बातें
रोटी, कपड़ा दे पाऊं मैं


बिन ब्याही बेटी के सपने
कैसे दीप जलाऊं मैं
लाल जोड़े की आस जगाये
दहेज़ कहाँ से लाऊं मैं


जीवन की साँझ में पलते
कैसे दीप जलाऊं मैं
उनकी जो उठा ले कांवर
श्रवण ढूंढ न पाऊं मैं


बिरहन के सूने नैना
कैसे दीप जलाऊं मैं
भर दे जो सतरंग उजास
प्रिय को उसके ला पाऊं मैं
                                              
                                            फिर तो दीप जलाऊं मैं