पूरब में सूरज की लाली
देख प्रियतम हर्षाये
उगते सूर्य की तरुनाई
मन में आस जगाये
सर सर बहती ठंडी हवाएं
तन मन दोनों सिहराए
भोर में करते खग कलरव
धीमा मीठा संगीत सुनाये
आँगन में अनमन सी फिरूँ
पायल की रुनझुन न भाए
अँखियाँ राह पे टंगी हुई
मेरी चूनर सरकी जाये
खड़ी अटारी जिसे निहारूं
वे तो नजर न आये
कहाँ छिपे मनमीत मेरे
दिल का चैन चुराए .
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khoobsurat bhaw
ReplyDeleteखड़ी अटारी जिसे निहारूं
ReplyDeleteवे तो नजर न आये
कहाँ छिपे मनमीत मेरे
दिल का चैन चुराए .
छन्दबद्ध कविता का अपना सोंदर्य होता है .सुन्दर प्रस्तुति .
प्रेम की छन्दानुभूति।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteकाव्य प्रयोजन (भाग-८) कला जीवन के लिए, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
bahut hi achhi prastuti.....
ReplyDeletebade khoobsurt chhand ban pade hai.......badhai
बहुत ही मीठी मीठी अनुभूति।
ReplyDeleteआप तो बहुत सुन्दर लिखती हैं...बधाई.
ReplyDelete______________
'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
हमेशा की तरह एक प्यारी सी प्रस्तुति
ReplyDeleteMere Bhav khoobsurat bhaw
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