स्वाद प्रसार बहुत है
रसभाषा रसवंती
ऋतुओं में वासंती है यह
रागों में मधुवंती
भाषाएँ हो चाहे जितनी
यह सबकी हमजोली
स्वागत करती हिंदी सबका
बिखरा कुमकुम रोली .
हिंद की है आत्मा
पहचान हिंदुस्तान की
बनकर लहू है दौड़ती
नब्ज हिंदुस्तान की
राज करती है दिलों पर
हैं लाखों चाहने वाले
खूबसूरत है बयानी
मानने लगे हैं दुनिया वाले .
एकछत्र हो साम्राज्य
सबको रेशम डोर बांधती
जो कुछ संकोच हो कहने में
रसिया सी सब कह जाती
कितनी बोली कितनी भाषा
इतनी सुमधुर कोई और नहीं
कितना भी उन्नत हो जाए
हिंदी जैसी कोई मणि नहीं .
देश के रोम रोम में
अनगिनत भाषा बोली
बड़ी बहन सा व्यवहार
सब भाषा की है सहेली
संस्कृति की पहचान यही
यही है देश की धड़कन
मान रखें सम्मान करें
आओ करे हम इसे नमन
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बहुत ही अच्छी रचना .. ऐसी रचनाएँ अक्सर आशा का संचार करती हैं ... लाजवाब ..
ReplyDeleteएकछत्र हो साम्राज्य
ReplyDeleteसबको रेशम डोर बांधती
जो कुछ संकोच हो कहने में
रसिया सी सब कह जाती
कितनी बोली कितनी भाषा
इतनी सुमधुर कोई और नहीं
कितना भी उन्नत हो जाए
हिंदी जैसी कोई मणि नहीं
नया दृष्टिकोण दिया है इन पंक्तियों में ... बहुत सुंदर रचना है आज के दिन के लिए ....
नमन हमारा भी हिन्दी को ... राष्ट्र भाषा को ....
हिंदी में बसते है हमारे प्राण .स्तुति गान अत्यंत प्रभावशाली है .बधाई .
ReplyDeleteहिन्दी दिवस की शुभकामनायें।
ReplyDeleteआदरणीया RAMPATIJI
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत सुंदर शब्दावली में श्रेष्ठ सरस रचना के लिए बधाई ! साधुवाद !!
ऋतुओं में वासंती है यह
रागों में मधुवंती
भाषाएँ हो चाहे जितनी
यह सबकी हमजोली
स्वागत करती हिंदी सबका
बिखरा कुमकुम रोली
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
ramapati ji,
ReplyDeletebahut prabhaavshaali prastuti, shubhkaamnaayen.
कैसे गूंगा भारत महान जिसकी कोई राष्ट्रभाषा नहीं ?
ReplyDeleteउधार की भाषा कहना क्या? चुप रहना ही बेहतर होगा,
गूंगे रहकर जीना क्या? फिर मारना ही बेहतर होगा
मेरी दो कविताएँ हमारी मातृभाषा को समर्पित :
१. उतिष्ठ हिन्दी! उतिष्ठ भारत! उतिष्ठ भारती! पुनः उतिष्ठ विष्णुगुप्त!
http://pankaj-patra.blogspot.com/2010/09/hindi-diwas-rashtrabhasha-prakash.html
२. जो मेरी वाणी छीन रहे हैं, मार डालूं उन लुटेरों को।
http://pankaj-patra.blogspot.com/2010/09/hindi-diwas-matribhasha-rashtrabhasha.html
– प्रकाश ‘पंकज’
एकछत्र हो साम्राज्य
ReplyDeleteसबको रेशम डोर बांधती
...धन्यबाद इस रचना के लिए
लिखते रहिये
बहुत ही अच्छी रचना हिन्दी दिवस की शुभकामनायें।
ReplyDeleteheee
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