Tuesday, September 14, 2010

रसवंती हिंदी

स्वाद प्रसार बहुत है
रसभाषा रसवंती
ऋतुओं में वासंती है यह
रागों में मधुवंती
भाषाएँ हो चाहे जितनी
यह सबकी हमजोली
स्वागत करती हिंदी सबका
बिखरा कुमकुम रोली .

हिंद की है आत्मा
पहचान हिंदुस्तान की
बनकर लहू है दौड़ती
नब्ज हिंदुस्तान की
राज करती है दिलों पर
हैं लाखों चाहने वाले
खूबसूरत है बयानी
मानने लगे हैं दुनिया वाले .

एकछत्र हो साम्राज्य
सबको रेशम डोर बांधती
जो कुछ संकोच हो कहने में
रसिया सी सब कह जाती
कितनी बोली कितनी भाषा
इतनी सुमधुर कोई और नहीं
कितना भी उन्नत हो जाए
हिंदी जैसी कोई मणि नहीं .

देश के रोम रोम में
अनगिनत भाषा बोली
बड़ी बहन सा व्यवहार
सब भाषा की है सहेली
संस्कृति की पहचान यही
यही है देश की धड़कन
मान रखें सम्मान करें
आओ करे हम इसे नमन

10 comments:

  1. बहुत ही अच्छी रचना .. ऐसी रचनाएँ अक्सर आशा का संचार करती हैं ... लाजवाब ..

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  2. एकछत्र हो साम्राज्य
    सबको रेशम डोर बांधती
    जो कुछ संकोच हो कहने में
    रसिया सी सब कह जाती
    कितनी बोली कितनी भाषा
    इतनी सुमधुर कोई और नहीं
    कितना भी उन्नत हो जाए
    हिंदी जैसी कोई मणि नहीं

    नया दृष्टिकोण दिया है इन पंक्तियों में ... बहुत सुंदर रचना है आज के दिन के लिए ....
    नमन हमारा भी हिन्दी को ... राष्ट्र भाषा को ....

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  3. हिंदी में बसते है हमारे प्राण .स्तुति गान अत्यंत प्रभावशाली है .बधाई .

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  4. हिन्दी दिवस की शुभकामनायें।

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  5. आदरणीया RAMPATIJI
    नमस्कार !
    बहुत सुंदर शब्दावली में श्रेष्ठ सरस रचना के लिए बधाई ! साधुवाद !!
    ऋतुओं में वासंती है यह
    रागों में मधुवंती
    भाषाएँ हो चाहे जितनी
    यह सबकी हमजोली
    स्वागत करती हिंदी सबका
    बिखरा कुमकुम रोली


    शुभकामनाओं सहित …
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  6. ramapati ji,
    bahut prabhaavshaali prastuti, shubhkaamnaayen.

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  7. कैसे गूंगा भारत महान जिसकी कोई राष्ट्रभाषा नहीं ?

    उधार की भाषा कहना क्या? चुप रहना ही बेहतर होगा,
    गूंगे रहकर जीना क्या? फिर मारना ही बेहतर होगा


    मेरी दो कविताएँ हमारी मातृभाषा को समर्पित :


    १. उतिष्ठ हिन्दी! उतिष्ठ भारत! उतिष्ठ भारती! पुनः उतिष्ठ विष्णुगुप्त!

    http://pankaj-patra.blogspot.com/2010/09/hindi-diwas-rashtrabhasha-prakash.html


    २. जो मेरी वाणी छीन रहे हैं, मार डालूं उन लुटेरों को।

    http://pankaj-patra.blogspot.com/2010/09/hindi-diwas-matribhasha-rashtrabhasha.html


    – प्रकाश ‘पंकज’

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  8. एकछत्र हो साम्राज्य
    सबको रेशम डोर बांधती

    ...धन्यबाद इस रचना के लिए

    लिखते रहिये

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  9. बहुत ही अच्छी रचना हिन्दी दिवस की शुभकामनायें।

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