Saturday, September 11, 2010

कौन हो तुम

गुलाब के पराग सी
आभा गुलाबी

सूरज के प्रकाश सी
रक्तिम लाली

नदी के प्रवाह सी
चंचल इठलाती

चंदा की चांदनी सी
शीतलता फैलाती

सुवासित रजनीगंधा सी
खुशबू बिखराती

मंद मलय सी
कानों में फुसफुसाती

आहलादित मयूरी सी
देख मेघा नाचती

इन्द्रधनुष सी
रंगों को दुलारती

झीनी दीपशिखा सी
मार्ग को दिखाती

लगती अपनी सी
राह निहारती

भोर की किरण सी
ऊर्जा भर जाती

भावों की सम्मोहना सी
खींचे लिए जाती

बूढी पुजारिन सी
बिन कहे समझ जाती

कौन हो तुम
पहेली बूझी न जाती .

11 comments:

  1. सुन्दर भावना ....पहेली मत बनाइये ...बस महसूस कीजिये

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  2. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (13/9/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  3. ईश्‍वर की प्रथम कृति, प्रकृति क्‍या इससे कुछ अलग ?

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  4. pahli baar aapki profile se aapko padha aur samjha. ab tak to yahi nahi pata chalta tha ki lekhak male he ya female...ab itna to pata chala. :):) shukriya.

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  5. "बूढी पुजारिन सी
    बिन कहे समझ जाती
    कौन हो तुम
    पहेली बूझी न जाती."
    kavita mein behad sunder varnnatmk gatisheelata hai.andikhe bhawon ko shareer diya hai aapne wo bhi bahut khoobasoorati se.

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  6. kis ansulji phaeli ko suljane ke koshish kar rahe hoo aap, kaun hai jisse janan chate hoo

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  7. aapki kavitaye ,
    jese shard poonima ki chandi
    jese barish ki pahli phuaar
    or jese ek natkhat bache ka
    piyara sa khilona.........
    shubhkamnaye..........
    anjana bakshi
    jnu

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