गुलाब के पराग सी
आभा गुलाबी
सूरज के प्रकाश सी
रक्तिम लाली
नदी के प्रवाह सी
चंचल इठलाती
चंदा की चांदनी सी
शीतलता फैलाती
सुवासित रजनीगंधा सी
खुशबू बिखराती
मंद मलय सी
कानों में फुसफुसाती
आहलादित मयूरी सी
देख मेघा नाचती
इन्द्रधनुष सी
रंगों को दुलारती
झीनी दीपशिखा सी
मार्ग को दिखाती
लगती अपनी सी
राह निहारती
भोर की किरण सी
ऊर्जा भर जाती
भावों की सम्मोहना सी
खींचे लिए जाती
बूढी पुजारिन सी
बिन कहे समझ जाती
कौन हो तुम
पहेली बूझी न जाती .
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सुन्दर भावना ....पहेली मत बनाइये ...बस महसूस कीजिये
ReplyDeleteबहुत निर्मल भावों से सजी सुंदर रचना.
ReplyDeleteहर पल होंठों पे बसते हो, “अनामिका” पर, . देखिए
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (13/9/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
ईश्वर की प्रथम कृति, प्रकृति क्या इससे कुछ अलग ?
ReplyDeletepahli baar aapki profile se aapko padha aur samjha. ab tak to yahi nahi pata chalta tha ki lekhak male he ya female...ab itna to pata chala. :):) shukriya.
ReplyDeletebahut bhawpurn rachna
ReplyDeleteबहुत भावुक रचना।
ReplyDeleteअति सुन्दर !
ReplyDelete"बूढी पुजारिन सी
ReplyDeleteबिन कहे समझ जाती
कौन हो तुम
पहेली बूझी न जाती."
kavita mein behad sunder varnnatmk gatisheelata hai.andikhe bhawon ko shareer diya hai aapne wo bhi bahut khoobasoorati se.
kis ansulji phaeli ko suljane ke koshish kar rahe hoo aap, kaun hai jisse janan chate hoo
ReplyDeleteaapki kavitaye ,
ReplyDeletejese shard poonima ki chandi
jese barish ki pahli phuaar
or jese ek natkhat bache ka
piyara sa khilona.........
shubhkamnaye..........
anjana bakshi
jnu