Friday, December 31, 2010

नया साल आया है

दुल्हन सा बैचैन मन

जागा सारी रात
नए वर्ष के द्वार पर
आ पहुंची बारात । 

शहनाई पर 'भैरवी' 
छेड़े कोई राग 
या फूलों पर तितलियाँ 
लेकर उड़ीं पराग । 

इतनी सी सौगात ला 
आने वाले साल
पीने को पानी मिले 
सस्ता आटा , दाल । 

भाषा, मजहब, प्रान्त के 
झगडे और संघर्ष 
तू ही आकर दूर कर 
मेरे नूतन वर्ष । 

ये बूंदें हैं ओस की 
या मोती का थाल 
आओ देखें गेंहू के 
खेतों में नव साल । 

वो सरसों के खेत में
सपने, खुशियाँ, हर्ष
अपने घर और गाँव भी 
आया है नव वर्ष । 

नई भोर की रश्मियों 
रुको हमारे देश 
अंधियारों से आखिरी 
जंग अभी है शेष ।