शिशु हूँ मैं
थामकर तुम्हारी उँगलियाँ
चढ़ना चाहता हूँ
जीवन की सीढियां ।
अबोध की तरह
अक्षर बोध कराओ मुझे
ताकि समझ सकूं
दुनिया की समझ ।
एक युवा के
सपनों की तरह
आत्मविश्वास से पूरित
छूना चाहता हूँ आकाश ।
एक पुरुष की तरह
अनुप्रिया बनाना चाहता हूँ
ताकि बाँट सकूं तुमसे
भावों का अतिरेक ।
एक वृद्ध की तरह
स्मरण करना चाहता हूँ
थरथराते हाथों से
ज्यों आराध्य हो तुम ।
एक आसक्त की तरह
सम्पूर्ण होना चाहता हूँ
देकर समर्पित समर्पण
तुम्हारे स्पर्श से .
एक आसक्त की तरह
ReplyDeleteसम्पूर्ण होना चाहता हूँ
देकर समर्पित समर्पण
तुम्हारे स्पर्श से.
बहुत सुंदर!
behad sundar bhaav.
ReplyDeleteख्वाहिशें तरह तरह की ,
ReplyDeleteनिकलती है तरह तरह से
पूरा फिर लगा अधूरा ,
जो देखा इस तरह से ...
सुन्दर अभिव्यक्ति ...
एक आसक्त की तरह
ReplyDeleteसम्पूर्ण होना चाहता हूँ
देकर समर्पित समर्पण
तुम्हारे स्पर्श से .
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
सुनदर प्रवाह मन भावों का।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर एवँ भावपूर्ण रचना ! !
ReplyDeleteखूबसूरत रचना.....
ReplyDeleteLajwab......beyond comparison.....unique in all aspects......congratulations
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