Friday, September 10, 2010

तुम्हारे स्पर्श से

शिशु हूँ मैं
थामकर तुम्हारी उँगलियाँ
चढ़ना चाहता हूँ
जीवन की सीढियां ।

अबोध की तरह
अक्षर बोध कराओ मुझे
ताकि समझ सकूं
दुनिया की समझ ।

एक युवा के
सपनों की तरह
आत्मविश्वास से पूरित
छूना चाहता हूँ आकाश ।

एक पुरुष की तरह
अनुप्रिया बनाना चाहता हूँ
ताकि बाँट सकूं तुमसे
भावों का अतिरेक ।

एक वृद्ध की तरह
स्मरण करना चाहता हूँ
थरथराते हाथों से
ज्यों आराध्य हो तुम ।

एक आसक्त की तरह
सम्पूर्ण होना चाहता हूँ
देकर समर्पित समर्पण
तुम्हारे स्पर्श से .


8 comments:

  1. एक आसक्त की तरह
    सम्पूर्ण होना चाहता हूँ
    देकर समर्पित समर्पण
    तुम्हारे स्पर्श से.

    बहुत सुंदर!

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  2. ख्वाहिशें तरह तरह की ,
    निकलती है तरह तरह से
    पूरा फिर लगा अधूरा ,
    जो देखा इस तरह से ...

    सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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  3. एक आसक्त की तरह
    सम्पूर्ण होना चाहता हूँ
    देकर समर्पित समर्पण
    तुम्हारे स्पर्श से .
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !

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  4. सुनदर प्रवाह मन भावों का।

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  5. बहुत ही सुन्दर एवँ भावपूर्ण रचना ! !

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  6. Lajwab......beyond comparison.....unique in all aspects......congratulations

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