दिल करता है इंतज़ार
कुछ इसको भी कह जाना
जाते हो बहुत दूर मुझसे
मन से दूर न जाना ।
झलक देखने को व्याकुल
दर्शन को तरसेंगी अँखियाँ
कहाँ मैं देखूं छवि तुम्हारी
सावन बरसेंगी अँखियाँ ।
रूप सुदर्शन सबको भाए
चन्दन मन शीतल कर जाए
मीठी बोली बरसाए सुधा
आँख खुले हो जाए विदा ।
हाथ छुडाये जाते हो
स्मृति छुड़ा न पाओगे
जब साथ रहेगी तन्हाई
याद बहुत तुम आओगे ।
दिन रैन बिताऊं पहलू में
नित सपने नव गढ़ते हैं
कैसे मैं खुद को समझाऊँ
तारे नहीं झोली भरते हैं ।
रातें नागिन दिन है पहाड़
हमें काटने हैं खुद ही
यादों की सूली पर चढ़ते
सलीब उठाये हैं खुद ही ।
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बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteआपकी भाषिक संवेदना पाठक को आपकी आत्मीय दुनिया की सैर कराने में सक्षम है।
ReplyDeleteकविता पाठके के मन को छू लेती है!
स्मृतियाँ नहीं छोड़ती हैं।
ReplyDeleteहाथ छुडाये जाते हो
ReplyDeleteस्मृति छुड़ा न पाओगे
जब साथ रहेगी तन्हाई
याद बहुत तुम आओगे ...
यादें यादें यादें ... सच है ये पीछा नही छोड़ती .... लाजवाब है रचना ...
दिन रैन बिताऊं पहलू में
ReplyDeleteनित सपने नव गढ़ते हैं
कैसे मैं खुद को समझाऊँ
तारे नहीं झोली भरते हैं ।
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बहुत खूब !
बधाई !
बहुत ही अच्छी कविता लिखी ....अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteआप की रचना 03 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/2010/09/266.html
आभार
अनामिका