Saturday, August 21, 2010

चन्दन वन में

अपने सपनो के
बनाती हूँ पंख
उड़ चलो तुम
सात समंदर पार ।

अपनी आँखों की
बनाती हूं ज्योति
बढ़ चलो तुम
शिखर की ओर ।

अपने भावों की
बनाती हूं पतवार
कर लो तुम
मन सागर पार ।

अपने गीतों में
सुनाती हूं सन्देश
घूम आओ तुम
परियो के देस ।

अपने ह्रदय पुष्प
बिछाती हूं मैं
कदम बढाओ तुम
मेरे चन्दन वन में ।

अपनी बाहों का एक बार
बना लो झूला
झूल जाऊं मैं बन मोरनी
मन में सावन का मेला ।

14 comments:

  1. आपकी कविता पढ़ने पर लू में शीतल छाया की सुखद अनुभूति मिलती है।

    ReplyDelete
  2. खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई

    ReplyDelete
  3. "अपने हाथों का एक बार
    बना लो झूला
    झूल जाऊं मैं मोरनी बन"

    अति सुंदर

    ReplyDelete
  4. अपनेपन से सजाती हूँ,
    तुम्हारे हर अंग को,
    अब तो मेरे रंग में बस जाओ।

    ReplyDelete
  5. बहुत भावपूर्ण!

    ReplyDelete
  6. खूबसूरत रचना लगी, बधाई ।

    ReplyDelete
  7. अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।

    ReplyDelete
  8. अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

    ReplyDelete
  9. यह चकित करती कविता है। ठेठ जमीनी अंदाज में हैं भावावेग से भरी कविता। एक संवेदनशील मन की निश्‍छल अभिव्‍यक्तियों से भरा-पूरा है। बधाई!

    ReplyDelete
  10. काश ये सारी इच्छाएं पूरी हो जाये तो ये कविता सफल हो जाये.

    सुंदर निर्मल भाव.

    ReplyDelete
  11. मनोज जी से सहमत

    ReplyDelete
  12. बहुत सुन्दर ...भाव प्रधान रचना

    ReplyDelete
  13. अपने सपनो का
    बनाती हूँ पंख
    उड़ चलो तुम
    समंदर पार
    sapno ka pankh , poori duniya kee udaan

    ReplyDelete