प्रीत का रंग
भरा उमंग
तेरा संग
सच्चा आनंद
बाहर सावन
भीतर बसंत
स्वर में वीणा
वाणी मृदंग
आँखें स्वप्निल
ह्रदय अन्तरंग
रूप तुम्हारा
अदभुत बहिरंग
छू लो तुम
कुंदन हो जाऊं
धड़क धड़क
ह्रदय समाऊँ
बन मोहक पुष्प
तेरे केश सजाऊँ
या बन भौंरा
तुझ पर मंडराऊं
जब आसपास
लगे हवा महकने
समझ लेना
मैं लगा बहकने
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
sundar bhav hai..!!
ReplyDeleteउम्दा शब्द संयोजन...रचना सुन्दर बन पड़ी है, बधाई आपके मित्र को.
ReplyDeleteआँखें स्वप्निल
ReplyDeleteह्रदय अन्तरंग
रूप तुम्हारा
अदभुत बहिरंग
सुंदर प्रस्तुतिकरण
बधाई
बहकने का अंदाज़ भा गया।
ReplyDelete