Saturday, August 7, 2010

तेरा संग

प्रीत का रंग
भरा उमंग
तेरा संग
सच्चा आनंद

बाहर सावन
भीतर बसंत
स्वर में वीणा
वाणी मृदंग

आँखें स्वप्निल
ह्रदय अन्तरंग
रूप तुम्हारा
अदभुत बहिरंग

छू लो तुम
कुंदन हो जाऊं
धड़क धड़क
ह्रदय समाऊँ

बन मोहक पुष्प
तेरे केश सजाऊँ
या बन भौंरा
तुझ पर मंडराऊं

जब आसपास
लगे हवा महकने
समझ लेना
मैं लगा बहकने

4 comments:

  1. उम्दा शब्द संयोजन...रचना सुन्दर बन पड़ी है, बधाई आपके मित्र को.

    ReplyDelete
  2. आँखें स्वप्निल
    ह्रदय अन्तरंग
    रूप तुम्हारा
    अदभुत बहिरंग

    सुंदर प्रस्तुतिकरण
    बधाई

    ReplyDelete
  3. बहकने का अंदाज़ भा गया।

    ReplyDelete