हर तीली में
समाई है वही आग
जो करती है
प्रज्वलित पावन दीप
जलाती है चूल्हा
सुलगाती है अंगीठी
दहकाती है भट्टी
जो गलाती है लोहा
बनाती है इस्पात
भीतर की चिंगारी
माचिस की एक तीली .
आग नहीं
तुम ताप बनो
प्रेम की तपिश बनो
भावों की भट्टी में
गला दो सारा विषाद
पिघला दो सारा अवसाद
कर दो निर्मित कुंदन
तुम्हारे मन जैसा .
.....
एक बूँद अपने आप में
पूर्ण जिसमें
समाया है बादल
समाई है नदी
समाहित है समंदर
जो ले आता है ववंडर
बहा ले जाता है
शहरों के शहर
और दे जाता है
आँखों में समाया आंसू .
बनना है तो बनो बूँद
हर बूँद अपने आप में भरी
स्वयं ही पहली
और स्वयं ही आखिरी
हर बूँद उतनी ही प्यारी
बूँद बूँद का महत्व
है सागर की विशालता में
किसी में समा जाने के लिए
ओस की बूँद की तरह .
......
मिटटी का हर कण
अपने आप में सम्पूर्ण
चाहे गमले में हो
खेत या खलिहान में
या फिर
किसी खूबसूरत घर के लान में
सोख लेती है
सारा गरल
जो होता है अनर्गल .
बदले में देती है
सब नया अनछुआ
और उपयोगी
विशाल है उसका ह्रदय
विस्तृत है उसकी
उर्वरा क्षमता सहनशीलता
एक नारी की तरह ।
........
बेहद उम्दा अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteगला दो सारा विषाद
ReplyDeleteपिघला दो सारा अवसाद
कर दो निर्मित कुंदन
तुम्हारे मन जैसा .
सुन्दर रचना .. बेहतरीन आह्वान
मेरे भाव
ReplyDeleteदिखलाई नहीं दे रहे
महंगाई वाले भाव तो नहीं हैं न ?
बड़ी सुन्दर उद्घोषणा।
ReplyDeleteआग नहीं
ReplyDeleteतुम ताप बनो
प्रेम की तपिश बनो
भावों की भट्टी में
गला दो सारा विषाद
पिघला दो सारा अवसाद
कर दो निर्मित कुंदन
तुम्हारे मन जैसा .
phir dekho duniya ko ....bahut hi achhi baat kah di hai aapne
गला दो सारा विषाद
ReplyDeleteपिघला दो सारा अवसाद
कर दो निर्मित कुंदन
तुम्हारे मन जैसा .
सुन्दर रचना बेहतरीन अभिव्यक्ति
सुन्दर रचना .... बेहतरीन आह्वान
ReplyDeleteमंगलवार 17 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/