Friday, August 13, 2010

माचिस की तीली

हर तीली में
समाई है वही आग
जो करती है

प्रज्वलित पावन दीप
जलाती है चूल्हा
सुलगाती है अंगीठी
दहकाती है भट्टी
जो गलाती है लोहा
बनाती है इस्पात
भीतर की चिंगारी
माचिस की एक तीली .

आग नहीं
तुम ताप बनो
प्रेम की तपिश बनो
भावों की भट्टी में
गला दो सारा विषाद
पिघला दो सारा अवसाद
कर दो निर्मित कुंदन
तुम्हारे मन जैसा .
.....


एक बूँद अपने आप में
पूर्ण जिसमें
समाया है बादल
समाई है नदी
समाहित है समंदर
जो ले आता है ववंडर
बहा ले जाता है
शहरों के शहर
और दे जाता है
आँखों में समाया आंसू .

बनना है तो बनो बूँद
हर बूँद अपने आप में भरी
स्वयं ही पहली
और स्वयं ही आखिरी
हर बूँद उतनी ही प्यारी
बूँद बूँद का महत्व
है सागर की विशालता में
किसी में समा जाने के लिए
ओस की बूँद की तरह .
......


मिटटी का हर कण
अपने आप में सम्पूर्ण
चाहे गमले में हो
खेत या खलिहान में
या फिर
किसी खूबसूरत घर के लान में
सोख लेती है
सारा गरल
जो होता है अनर्गल .

बदले में देती है
सब नया अनछुआ
और उपयोगी
विशाल है उसका ह्रदय
विस्तृत है उसकी
उर्वरा क्षमता सहनशीलता
एक नारी की तरह ।

........

8 comments:

  1. बेहद उम्दा अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  2. गला दो सारा विषाद
    पिघला दो सारा अवसाद
    कर दो निर्मित कुंदन
    तुम्हारे मन जैसा .
    सुन्दर रचना .. बेहतरीन आह्वान

    ReplyDelete
  3. मेरे भाव
    दिखलाई नहीं दे रहे
    महंगाई वाले भाव तो नहीं हैं न ?

    ReplyDelete
  4. बड़ी सुन्दर उद्घोषणा।

    ReplyDelete
  5. आग नहीं
    तुम ताप बनो
    प्रेम की तपिश बनो
    भावों की भट्टी में
    गला दो सारा विषाद
    पिघला दो सारा अवसाद
    कर दो निर्मित कुंदन
    तुम्हारे मन जैसा .
    phir dekho duniya ko ....bahut hi achhi baat kah di hai aapne

    ReplyDelete
  6. गला दो सारा विषाद
    पिघला दो सारा अवसाद
    कर दो निर्मित कुंदन
    तुम्हारे मन जैसा .
    सुन्दर रचना बेहतरीन अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  7. सुन्दर रचना .... बेहतरीन आह्वान

    ReplyDelete
  8. मंगलवार 17 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार

    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete