Friday, August 6, 2010

सृष्टा हो तुम

नदी की चंचलता
पर्वत की नीरवता
कलियों की गुपचुप
झरने की सरगम
सब मन में होते हैं
जब तुम करीब होती हो ।

ये दुनिया
कितनी
खूबसूरत लगती है
जब तुम हौले से
मुस्कुरा देती हो
झरना बहता है भीतर ।

जब तुम
दूर कर देती हो
दूसरों के दुःख
मैं पहाड़ हो जाता हूँ
दृढ हो जाता हूँ ।

तुम सुखद स्मृति
संगीत तुम्हीं में
तुम सुंदर स्वपन
झंकार तुम्हीं में
ख़ामोशी तुम्हारी
कहती सब बात
बिना सुने
समझो दिल का हाल ।

बहुत कुछ
बना देती हो मुझे
सृष्टा हो तुम ।

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