उठाई जब कलम
रचने को इतिहास
ख़ुशी से लगे इतराने
मेरे कागजात ।
चेहरा मेरा
दर्प से नहाया
आज मुझे भी कुछ
अभिमान हो आया ।
समय की भट्टी ने
चाहा जिसे खोना
गर्दिशों में तप कर
कुंदन हुआ सोना ।
झलकता है इस से
जीतने का जज्बा
अनवरत संघर्षो से
पाने को एक रूतबा ।
लिखते हुए हरफ आखिरी
थरथरा उठी थी नाजुक कलाई
दुआओं के बल पर उठाया जिन्होंने
उनकी स्मृति में आ गई रुलाई ।
पाकर यह मुकाम
मन में थी ख़ुशी
पर एक हूक भी थी
ऊंचाई पर अकेले होने की ।
क्षितिज हूँ मैं
जहाँ मिलते हैं
सपने और संघर्ष
गढ़ने को नई सुबह ।
(नोट: यह कविता तब लिखी थी जब पहली बार राजपत्रित अधिकारी बन कर किसी के कागजात को अभिप्रमाणित कर रही थी। यह कविता अपने पूज्य पिताजी को समर्पित करती हूँ, जिनके सपने और संघर्ष से मैं कोई मुकाम हासिल कर सकी। )
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आपको बहुत बहुत बधाई .कृपया हम उन कारणों को न उभरने दें जो परतंत्रता के लिए ज़िम्मेदार है . जय-हिंद
ReplyDeletekavita ka sandarbh jan kar uske shabd aur mukhar ho gaye.har shabd pahli jimmedari se upaji bechaini,hook aur sapane aur aashirvad ke samanjasya ko mukharit karti hai.
ReplyDeletebahut sunder rachna........
लिखते हुए हरफ आखिरी
ReplyDeleteथरथरा उठी थी नाजुक कलाई
दुआओं के बल पर उठाया जिन्होंने
उनकी स्मृति में आ गई रुलाई
ye aansu tham bhi nahin sakte
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आपको बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत पसन्द आया
ReplyDeleteहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
aapka har situation me likha lenaa aur yathaasamay apno ko yaad karate hue kavitaa karanaa achha lgtaa hi
ReplyDeleteलेखन मे बडी परिपक्वता है…………वृहद दृष्टिकोण्………………बेहद उम्दा प्रस्तुति।
ReplyDeleteye sach hi to hai ki sangarsh karne se hi sapne pure hote hain nahin to ve keval sapne hi rah jate hain
ReplyDeleteमंगलवार 17 अगस्त को आपकी रचना ( माचिस की तीली )... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
गहरे भाव लिए उत्तम रचना
ReplyDeletebhut khub qlm ke ishaare pr kaagz ko nchaane kaa hunr aapkaa nayaab or bemisaal he. akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteजीवन आशान्वित हो जी रहा है।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete"क्षितिज हूँ मैं
ReplyDeleteजहाँ मिलते हैं
सपने और संघर्ष
गढ़ने को नई सुबह"--
sapne aur sangharsh ke parinami bimb ko kshitij tak le jakar apne dono ko jo vistar diya hai,wakai kabile taarif hai.aik adbhut sabera hai yah jahan umeed ki rashmiyan hi hain aur kuch nahi.
बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआपकी कविता 'सपने और संघर्ष' प्रेरित करती हुई कविता है जिसमे आपने नारी के भीतर छुपी अदम्य इच्छा शक्ति, जुझारूपन को दर्शाया है... आत्म्कथ्यताक्मक कविता होते हुए भी यह कविता सार्वभौमिक है और गंभीरता लिए हुए है... आप यो ही आगे बढती रहे... नोट देकर आपने कविता को अलग दिशा दे दी... जिन्होंने आपके भीतर लड़ने.. बढ़ने और सपने देखने का जज्बा भरा.. उन्हें मेरा भी नमन...
ReplyDeleteये पंक्तिया काफी अच्छी हैं :
समय की भट्टी ने
चाहा जिसे खोना
गर्दिशों में तप कर
कुंदन हुआ सोना ।
कविता का अंत बेहद प्रभावशाली है और बिम्ब भी गढ़ता है..
क्षितिज हूँ मैं
जहाँ मिलते हैं
सपने और संघर्ष
गढ़ने को नई सुबह ।