Wednesday, August 11, 2010

जल रहा कश्मीर

बर्फीली घाटियाँ
फूलों की वादियाँ
शोखी की रहनुमाई
यौवन लेता अंगड़ाई ।

फिरती है एक लड़की
कुछ भूली बिसराई
ढूंढ़ती है यादें
है बहुत घबराई ।

खामोश है शिकारे
सूना पड़ा संगीत
केवट है पुकारे
न आये मनमीत ।

धरती का ये स्वर्ग
असुरों ने है घेरा
कहाँ पायें शरण
कहाँ डाले डेरा ।

क्यारी केसर की
महकना है भूली
कली शालीमार की
फिर से न फूली ।

आतंक और जंग
पैठ है लगाये
बारूद की गंध
हर ओर गंधाये ।

लाज पर पहरा नहीं
रक्षित नहीं है आबरू
सब तरफ शमशीर है
जल रहा कश्मीर है ।

9 comments:

  1. खामोश है शिकारे
    सूना पड़ा संगीत
    केवट है पुकारे
    न आये मनमीत ।

    खून खोल उठता है जब चंद दश्त-गर्दो के हाथो कश्मीर को नेस्तोनाबुत होते देखता हूँ...

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  2. बहुत मार्मिक और सार्थक रचना ...

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  3. भावनात्मक रचना..

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  4. सच में कश्मीर जल रहा है।

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  5. एक सच्चे, ईमानदार कवि के मनोभावों का वर्णन। बधाई।

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  6. आतंक और जंग
    पैठ है लगाये
    बारूद की गंध
    हर ओर गंधाये ।
    हकीकत तो यही है ... यह कुहराम कब रूकेगा

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  7. बहुत दर्द है इस रचना में और काश्मीर की दुरावस्था का एकदम यथार्थ चित्रण है ! एक ईमानदार अभिव्यक्ति के लिये बधाई !

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  8. भावपूर्ण रचना के लिये बधाई !

    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  9. कश्मीर जल रहा है
    http://padchihna.blogspot.com/2010/11/blog-post.html

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