Tuesday, July 27, 2010

सब कुछ लागे नया नया

हर दिन एक नया सूर्य
सुबह अलसाई आँखें मूँद
नई धूप है नई रश्मियाँ
है नई ओस की बूँद .

एहसास तुम्हारा लगे नया
नया हर पल तुम लगते नव
अनछुए अनुभव से तुम
हर क्षण लगते नूतन नवीन .

चांदनी सी तुम धुली धुली
नव पल्लव सी खिली खिली
बारिश में जैसे नहाई सी
पत्तों पर बूंदे फिसली फिसली .

नई है कोपल नयी सी रिमझिम
नया स्वर कलकल निर्झर
ख्वाब नए है नयी तरंगे
बहे तुम्हारा नेह झरझर .

नई राह है नई चाह है
नया रस्ता मंजिल भी नई
नई खुशियाँ के रंग नए
कदम चूम ले चमक नई .

6 comments:

  1. हर दिन एक नया सूर्य
    सुबह अलसाई आँखें मूँद
    नई धूप है नई रश्मियाँ
    है नई ओस की बूँद .

    सुन्दर कल्पना शक्ति ,साधे और सरल शब्द लिए हुए बहुत सुन्दर रचना ....! आपके ब्लॉग पर प्रथम बार आया ,,,,अच्छा लगा ,,,समय निकलकर पिछली रचनाएँ भी -पढता हूँ,,,,,, शब्दों के इस सुहाने सफ़र में आज से मैं भी आपके साथ हूँ ,,,चलो साथ चलते है ,,............!

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  2. ........नया स्वर कलकल निर्झर
    ख्वाब नए है नयी तरंगे......
    बहे तुम्हारा नेह झरझर . hamesha ki trh ek nai or sunder rachana hetu abhaar....

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  3. आपके उत्साह के सूर्य के प्रकाश से हम भी नहा लिये।

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  4. एक उम्‍दा कविता।
    सब नया सा दिख रहा है इक नया वादा करो
    दर्द औरों के समझकर अपने सुख साझा करो।

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