Tuesday, July 20, 2010

मिटटी

मैंने तो
बस भेजी थी
कच्ची मिटटी
तुमने बना दिया
उसे कलश
जिसमे भरा है
शीतल गंगा जल
करने को
पावन
बुझाने को
प्यास

मिटटी
क्या रूप लेगी
तय नहीं करती मिटटी
ये तो गढ़ने वाले हाथ
और चाक का कमाल है

प्यार की थपकी
मिले जिस दिशा में
वही आकार पा
जाती है मिटटी

मिटटी
भेजी थी तुमने
संग थे मेरे सपने
चाक था घुमाया
रूप सुदर्शन पाया
कुम्हार का कुम्हलाया
दीप्त हुआ चेहरा
हकीकत देख सुम्मुख
बहुत जी हरषाया

मिटटी को चूमा
माथे से लगाया .

10 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति!

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  2. umda rachna hai, shaping up the destiny of love and life some times in our hand some time others...

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  3. लाजवाब सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  4. मिटटी
    क्या रूप लेगी
    तय नहीं करती मिटटी
    ये तो गढ़ने वाले हाथ
    और चाक का कमाल है
    bilkul sahi, bahut badhiyaa

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  5. आजकल ऐसे कुम्हार कहाँ मिलते हैं।

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  6. इस मिट्टी की तरह ,हमारे बच्चों को भी अच्छा माहौल और अच्छा गुरु मिले ।

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  7. Minutely studied all the poems...surprisingly beautiful, so sweet.....if you dont take it otherwise, may I know whether these are "bhav ki Prastuti" or only "Prastuti ka bhav"?

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  8. जैसे कुम्ह्कार मिटटी को जीवन दे देता है आपने शब्दों से नया संसार रच दिया है ! सुंदर रचना !

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