मैंने तो
बस भेजी थी
कच्ची मिटटी
तुमने बना दिया
उसे कलश
जिसमे भरा है
शीतल गंगा जल
करने को
पावन
बुझाने को
प्यास
मिटटी
क्या रूप लेगी
तय नहीं करती मिटटी
ये तो गढ़ने वाले हाथ
और चाक का कमाल है
प्यार की थपकी
मिले जिस दिशा में
वही आकार पा
जाती है मिटटी
मिटटी
भेजी थी तुमने
संग थे मेरे सपने
चाक था घुमाया
रूप सुदर्शन पाया
कुम्हार का कुम्हलाया
दीप्त हुआ चेहरा
हकीकत देख सुम्मुख
बहुत जी हरषाया
मिटटी को चूमा
माथे से लगाया .
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
sundar prastuti.
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति!
ReplyDeleteumda rachna hai, shaping up the destiny of love and life some times in our hand some time others...
ReplyDeleteलाजवाब सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteमिटटी
ReplyDeleteक्या रूप लेगी
तय नहीं करती मिटटी
ये तो गढ़ने वाले हाथ
और चाक का कमाल है
bilkul sahi, bahut badhiyaa
आजकल ऐसे कुम्हार कहाँ मिलते हैं।
ReplyDeleteइस मिट्टी की तरह ,हमारे बच्चों को भी अच्छा माहौल और अच्छा गुरु मिले ।
ReplyDeleteलाजवाब...
ReplyDeleteMinutely studied all the poems...surprisingly beautiful, so sweet.....if you dont take it otherwise, may I know whether these are "bhav ki Prastuti" or only "Prastuti ka bhav"?
ReplyDeleteजैसे कुम्ह्कार मिटटी को जीवन दे देता है आपने शब्दों से नया संसार रच दिया है ! सुंदर रचना !
ReplyDelete