Wednesday, July 14, 2010

मंजरियाँ

आम्र पर बौर आये हैं
लगता वसंत की अगुवाई है
कोकिल ने छेड़ी मधुर तान
बजी ऋतुओं की शहनाई है ।

शुभ्र आगत का संकेत
लाई आम की मंजरियाँ
सुख वैभव की लिए पालकी
सस्वर हैं गाती ठुमरियां ।

हम सब की प्रिय हो तुम
देवों के सिर चढ़ इठलाती हो
तुम पावन, तुमसे पल्लव
प्रतीक सृजन की कहलाती हो ।

मंजरियाँ आयें शुभ आगम
कामदेव की विधा हो तुम
समृद्धि का रहे समागम
भावों की भीनी भोर हो तुम ।

मंजरियों की अलकें लगी झूलने
कोई गीत पुराना याद आया
मन गलियों में लगा घूमने
कल में आज है डूब गया ।

तुम्हीं से फल सिरमौर बना
जग में ऊँचा इसका धाम
सुगंध से है सरताज बना
सांवरिया का जैसे नाम ।

आया ऋतुराज तुम भी आओ
प्रकृति ने भेजी मधुशाला
मौसम पर मादकता छा दो
छलका दो अपनी प्रीत का प्याला ।

7 comments:

  1. भावपूर्ण रचना के लिये बधाई !

    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  2. गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना...

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  3. आपकी कविता पढ़ने पर लू में शीतल छाया की सुखद अनुभूति मिलती है।

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  4. प्रकृति की मधुशाला की हाला कब से पीना जाहता हूँ।

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  5. आपके मंजरियों से बहुत मोहक खुशबू आ रही है! शब्दों से बहुत रोमांचित कर देने वाला बिम्ब रचा है आपने !

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