Friday, July 16, 2010

रास्ते

पतली सी पगडण्डी हो
या आड़े तिरछे रस्ते
संकरी सी गलियां हों
या सीना ताने राजमार्ग ।

रास्ते हैं ये अंतहीन
दिशा का बोध कराते हैं
पथिक हो चाहे कैसा भी
मंजिल तक पहुंचाते हैं ।

दोराहे या चौराहे पर
भटक न जाना थम जाना
लेकर साथ अपना विवेक
लक्ष्य को अपने पा जाना ।

ये करते हैं इन्तजार
कब आयें प्रियवर मेरे
उनकी राहों में छावं बना दें
थक न जाएँ रघुवर मेरे ।

राह से तुम जाओगे गुजर
सुवासित हो जायेगी डगर
पंथ बुहारेगी पुरवईया
यहाँ से होकर गए सांवरिया ।

तलाश मुझे उस राह की
तेरे ह्रदय तक जाती हो
कोई और न सोचे जाने की
सिर्फ मुझे वहां ले जाती हो ।

4 comments:

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  2. काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर

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  3. रास्ता कविता अच्छी बनी है ! इश्वर करे आपको अपनी मंजिल मिले

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