कागज का लघु अंश नहीं
दिल का हाल सुनाता हूँ
सुख दुःख हो या मिलन बिछोह
सीने पर रखकर लाता हूँ .
दुल्हन की हंसी खनकती सी
ओढ़कर उड़कर आऊं मैं
लिए खारा पानी बिरहन का
खामोश सा सब कह जाऊं मैं .
शीश नवाए खड़ा हूँ मैं
लिख दो मुझ पर मन की बात
भीतर अपने समाये हुए मैं
हूँ मैं तेरा सच्चा हमराज .
संगी मैं तेरे सपनों का
खुशियों का प्रमाण हूँ मैं
लगा कर रखो ह्रदय से
बीते वक़्त की आन हूँ मैं .
राधा मेरा पंथ निहारे
बैराग धरा है मीरा ने
श्यामसुंदर न मुडकर देखे
सन्देश न भेजा बंसीधर ने .
धरोहर मैं नवयौवन की
दीपक हूँ माँ की आस का
गोरी मुझे बांचे उलट पुलट
लाया प्रेम संदेशा तेरे प्रिय का .
बहुत भावात्मक...पर आज कल कहाँ खत लिखे जाते हैं....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeletekhoobsurat prstuti
ReplyDeleteवो भी क्या जमाना था जब चिठ्ठियाँ लिखी जाती थी और उत्तर की प्रतीक्षा रहती थी. यह सुख तो अब मोबाईल ने छीन लिया.
ReplyDeleteब्लॉग के युग में चिट्ठियों पर कविता पढ़ कर बहुत अच्छा लगा.. अन्यथा इसे हम भूल ही जा रहे हैं... चिट्ठी से हम सबकी गहरी यादें जुडी होती हैं... आपने गुदगुदा दिया ! सुंदर विषय.. सुंदर रचना...
ReplyDelete