मंजिल
भीड़ से हटकर कुछ
इस तरह बढ़ना है
आसमां को छूकर भी
जमीं पर रहना है |
जमीं ने दिया है हौसला
छूने को नीला आकाश
जाकर मैं उस पर रख दूँ
सुन्दर सा एक सुर्ख पलाश |
भूमि ने है दिया भरोसा
खूब उड़ो तुम नील गगन में
यदि कभी कमजोर पड़े तो
साहस लेना तुम मुझसे |
उत्तम से भी हो अदभुत
पहचान बनाओ एक नई
भीड़ में भी जाओ पहचाने
पीछे हो अनुयायी कई |
कितना भी ऊँचा उड़ जाओ
सांझ ढले तुम आ जाना
धरती भी तो राह निहारे
अपनी मंजिल पा जाना |
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भूमि ने है दिया भरोसा
ReplyDeleteखूब उड़ो तुम नील गगन में
यदि कभी कमजोर पड़े तो
साहस लेना तुम मुझसे |
जड़ से जुड़े रहना...
बहुत ही सुन्दर सार्थक अप्रतिम सृजन ।
कितना भी आसमान छू लो लेकिन पैर धरती पर जमाये रखना ।।सुंदर रचना ।
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 18 दिसंबर 2022 को 'देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के' (चर्चा अंक 4626) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
कितना भी ऊँचा उड़ जाओ
ReplyDeleteसांझ ढले तुम आ जाना
लौटकर तो धरती पर ही आना है
बहुत ही सुन्दर सृजन 🙏
वाह वाह! अच्छी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteSundr rachana
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