Saturday, October 8, 2022

 मन की उड़ान 


बादलों के रथ पर सवार 

छूने निकले हम आसमान 

रुई के गोले फिरते आवारा 

मैं भी पीछे फिरूं बेचारा | 


छोड़ कर असीम धरती 

अम्बर में मैं घूम रहा 

मन तो उससे भी ऊँचा 

जाने किस लोक को ढूंढ रहा | 


एरोप्लेन और मन में 

है ठन गई अब तगड़ी 

कौन ऊँचा उड़ सकेगा 

किसकी बचेगी पगड़ी | 


मन के हैं पंख बहुतेरे 

कौन रोके उसकी पतवार 

तोड़कर सारे तट बंधों को 

ले उड़ा मुझे क्षितिज के पार | 


अकेले हम मन भी अकेला 

पीछे छूटा सारा मेला 

फुर्सत के लम्हों को सी लें

आओ खुद में, खुद को जी लें | 


मुझसे मिलने आना तुम 

मिल बैठेंगे पल दो चार 

सपनों में खो जाना तुम 

जब धरा मिले नभ बारम्बार  | 

            ***