मन की उड़ान
बादलों के रथ पर सवार
छूने निकले हम आसमान
रुई के गोले फिरते आवारा
मैं भी पीछे फिरूं बेचारा |
छोड़ कर असीम धरती
अम्बर में मैं घूम रहा
मन तो उससे भी ऊँचा
जाने किस लोक को ढूंढ रहा |
एरोप्लेन और मन में
है ठन गई अब तगड़ी
कौन ऊँचा उड़ सकेगा
किसकी बचेगी पगड़ी |
मन के हैं पंख बहुतेरे
कौन रोके उसकी पतवार
तोड़कर सारे तट बंधों को
ले उड़ा मुझे क्षितिज के पार |
अकेले हम मन भी अकेला
पीछे छूटा सारा मेला
फुर्सत के लम्हों को सी लें
आओ खुद में, खुद को जी लें |
मुझसे मिलने आना तुम
मिल बैठेंगे पल दो चार
सपनों में खो जाना तुम
जब धरा मिले नभ बारम्बार |
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