दुल्हन सा बैचैन मन
जागा सारी रात
नए वर्ष के द्वार पर
आ पहुंची बारात ।
शहनाई पर 'भैरवी'
छेड़े कोई राग
या फूलों पर तितलियाँ
लेकर उड़ीं पराग ।
इतनी सी सौगात ला
आने वाले साल
पीने को पानी मिले
सस्ता आटा , दाल ।
भाषा, मजहब, प्रान्त के
झगडे और संघर्ष
तू ही आकर दूर कर
मेरे नूतन वर्ष ।
ये बूंदें हैं ओस की
या मोती का थाल
आओ देखें गेंहू के
खेतों में नव साल ।
वो सरसों के खेत में
सपने, खुशियाँ, हर्ष
अपने घर और गाँव भी
आया है नव वर्ष ।
नई भोर की रश्मियों
रुको हमारे देश
अंधियारों से आखिरी
जंग अभी है शेष ।