Wednesday, June 30, 2010

गौरैया

चीं चीं स्वर ने मुझे जगाया
भोर हुई गौरैया ने बताया
मेरे घर आँगन के कोने
लचक डाल पर नीड़ बनाया ।

तिनका तिनका चुन लाती
सजाती अपना रैन बसेरा
चूजों से खूब लाड लड़ाती
उड़ जाती जब होता सवेरा ।

चोंच में दाना भरकर लाती
माँ को देख पुलक वे जाते
मुख से मुख लगा खिलाती
गर होते पंख वे उड़ जाते ।

भर लो तुम ऊंची उड़ान
धरा पर आना ही होगा
पंख पसारो चाहे जितने
संध्या लौटना ही होगा ।

अचानक एक तूफ़ान उठा
वायु क्रोध से पेड़ हताहत
घरोंदा रहा न गौरैया का
उजड़ा था घर बार किसी का ।

आओ फिर से वृक्ष लगाऊं
तुम्हारी उस पर ठौर बनाऊं
दुःख अपना तुम मुझे बताओ
आओ मेरे गले लग जाओ ।

गौरैया तुम मत घबराना
जीवन की है रीत यही
कुछ खोना है कुछ पाना
नियति देती है सीख यही ।

रोज एक मीठा गीत सुनाना
दूर देश की सैर को जाना
साँझ ढले जब लौट के आना
मेरे प्रिय का संदेसा लाना ।

Wednesday, June 23, 2010

सुबह

रश्मियाँ रक्तिम चटक उठीं
उठ मनवा क्यों सोया है
कजरारी रतिया बीत गयी
किसके सपनों में खोया है ।

रात सिर्फ एक रात नहीं
संवाहक है मीठी यादों की
चहल पहल से दूर कहीं
थाती है प्रिय की बातों की ।

हों दुःख की बोझिल रातें
आखिर कट ही जाएँगी
इन्तजार की लम्बी घड़ियाँ
सुबह सुहानी लायेंगी ।

चाँद और तारों का झुरमुट
बिरहन को तड़पाता है
सुप्रभात होगा एक दिन
चुपके से समझाता है ।

होती नित्य सुबह नई
कितनी यह भोर अनोखी है
लेने आयेंगे मीत मुझे
कितनी यह सुबह सलोनी है ।

Monday, June 21, 2010

तस्वीर

तस्वीर बसी इन आँखों में
जिधर देखती तुम ही हो
छवि निरंतन तैर रही
फिर क्योंकर इतना रूठे हो ।

गुजर गए कितने सावन
तेरी आस में याद नहीं
बेकरारी ये भी मनभावन
अपनी कुछ परवाह नहीं ।

बाहों की रेशम पुष्प डाल
कुछ अनमन और गुमसुम सी
भाग्यविधाता क्या दोष मेरा
मैं क्यों हूँ खोई खोई सी ।

सपनों में तस्वीर बनाऊं
नित लगती है नई नई
उससे घंटों बातें करती
मन भरता है कहीं नहीं ।

तस्वीर में उतरा अक्स मेरा
मानो मेरी परछाईं है
लगता नहीं दूर हो तुम
यादों की बदरी छाई है ।

Tuesday, June 15, 2010

दुआ

उठे जो हाथ
दुआ के लिए
उसमें
तुम ही तो थे ।

ईश्वर से माँगा
थोड़ा सुकून
तुम्हारे
लिए ही तो था ।

झुक गया
मेरा सर्वांग
तुम्हें
और ऊंचा
उठाने के लिए ही ।

झोली अपनी
फैला दी
मैंने
तुम्हें
पाने के लिए ही ।

आरजू की
हो पाऊं दृढ
तुम्हें
हर बला से
बचाने के लिए ही ।

हसरत थी
कुछ मांगू
उनसे
बिन मांगे ही
मिल गया सब ।

तुम जो मिल गए ।

Monday, June 14, 2010

चन्दा

ऐ चन्दा ! तुम आज रात
हमसे मिलने आ जाना
चाँदी सी धवल डोरियाँ
आँगन में बिसरा जाना ।

सूनी रातों के साक्षी तुम
हमें निहारा करते हो
बैरन बदली की ओट ले
कुछ समझाया करते हो ।

नागिन सी काली रात
काटे से नहीं कटती है
आओ हम तुम बतलाएं
गमगीन है वो भी कहती है ।

मेरा यह पैगाम तुम्हें
उन तक पहुँचाना ही होगा
याद में उनकी मीरा हो गई
अब तो आना ही होगा ।

तारों की बारात लिए
तुम कितना इतराते हो
रंगहीन जीवन पर मेरे
क्या आंसू नहीं बहाते हो ।

ताप विरह की अधिक सताए
थोड़ी शीतलता भर देना
मिलूं जब अपने साजन से
मुट्ठी भर मादकता दे देना ।