Monday, February 22, 2010

रंग बरसे

होली आने में दिवस बचे
रंगों की फुहार चली आई ।

हम बाट जोहते कान्हा की
राधा रंग लिए चली आई ।

है मेला रंग, गुलालों का
जज्बातों का, मनुहारों का ।

भांग घोटते , गाते रसिया
थिरक रही गोरी मनबसिया ।

होली मिलन की है तैयारी
मस्ती में झूम रहे नर-नारी ।

है आस मुझे, रंग दूं प्रिय को
लाज, हया तज, अंग लगूं प्रिय के ।

रंग, अबीर सब और, धूम है भारी
चाहे भीगे धानी चुनरिया या फिर भीगे साड़ी ।

Sunday, February 14, 2010

हवा उदास है

मलिन हुआ क्यों दप-दप मुखड़ा
नैनो में ख़ामोशी छाई
लब भी थोड़े चुप-चुप से है
क्यों घटा उदासी की छाई ।

अल्हड लट है शांत हुई
मन का उद्वेग थमा सा है
मेरी बातों से हुए हो आहत
क्या बोल मेरा खंजर सा है ।

डर था मुझको इसी बात का
जो अब है प्रत्यक्ष हुआ
ह्रदय पाट नहीं खोले अभी
बस एक झरोखे से यह हाल हुआ ।

मेरे अंतर में लगा के गोता
जब तुम बाहर आओगे
दूर देश बस जाओगे
फिर निकट नहीं तुम आओगे ।

Tuesday, February 9, 2010

प्रेम के मोती

सोनचिरैया हूँ मैं तुम्हारी
पुचकार के दाना डालो
नहीं चुगु मैं हीरे मानिक
प्रेम के मोती डालो ।

हृदय पिंजर में कैद यहाँ
सोच सोच व्याकुल हूँ
द्वार खुला क्यों छोड़ गए तुम
देख देख आकुल हूँ ।

पंख पसारूं दूर गगन में
या रहूँ यहीं बंदिनी बनकर
उन्मुक्त व्योम में भरू उड़ान
या रहूँ तुम्हारी हंसिनी बनकर ।

हूँ सोने के बंदीगृह में
मन चाहे स्वछन्द उड़ान
प्रेम के मोती चुग ले हंसा
रह जायेगा मेरा मान ।

Sunday, February 7, 2010

अभिलाषा

यो चातक के जैसे मुझे न निहारो

मैं अभिलाषा तुम्हारी, नेह मुझ पर वारो ।

सम्मोहन सा बंधन, ये अनजानी सी डगर

कहाँ इसकी मंजिल, है किसको खबर ।

दिल में बसाये जाते हो किधर

कुछ तो बोलो , जरा आओ इधर ।

ये प्रेम पगडण्डी, चलना इस पर भारी

नहीं है सरल, है तलवार दोधारी ।

मेरी रह-गुजर पर , यो दौड़े चले आये

हथेली पर रख कर दिल, नजराना लिए आये।

Monday, February 1, 2010

शुभिच्छा

दूर डाल की फुनगी पर
कोयल ने छेड़ा एक गीत
स्वीकार बधाई हो मेरी
सखा मेरे, मय प्रीत ।

कस्तूरी से तुम महको
जीवन की मरू भूमि में
संतोष प्राप्त कर, अमर रहो
सुख दुःख की लुका छिपी में ।

खूब फलो, आगे बढ़ो
बस, कर्मठता ही गुण है
ईमान, सहोदर रहे तुम्हारा
यही सर्वदा सदगुण है ।

दूज चंद्रमा से तुम शीतल
सबकी आँखिन में बसते हो
अखंड दीप से , तुम रोशन
पर, दंभ नहीं तुम भरते हो ।

तरुवर ज्यों , लदा कंद से
नतमस्तक हो कहता है
सुस्ताओ दो पल, छाँव में मेरी
क्षुधा शांत भी करता है ।

मीठे पानी के निर्झर से
कल कल करके बहते हो
मंशाएं बलवती रहे तुम्हारी
जिसकी आस को पाला करते हो ।

लाभ कमाओ , यश बढे
उम्मीद बकाया न रहे
महालक्ष्मी और सरस्वती
दोनों पहलू में रहे ।

न दू में एक पुष्पगुच्छ
न कोई और उपहार
चिरायु यौवन रहे तुम्हारा
अक्षय , सदाबहार ।