लब खामोश हैं
कौन कहता है कि
बोलने के लिए
कुछ कहने के लिए
शब्दों की है जरुरत
यहाँ तो बिन बोले ही
बिना कुछ कहे ही
एक लम्बी सी
गुफ्तगू हो जाती है
चेहरे के ये भाव
आते हैं जाते हैं
सारा हाल बताते हैं
शब्द ठगे से रह जाते हैं
ये आँखें हैं
मन का आईना
तुम कुछ ना कहो
ये सब कह जाती हैं
शब्दों को था गुमान
बिन हमारे न बोल पाओगे
यदि हम दें न साथ
कुछ जान नहीं पाओगे
मिथ्या था ये भरम
आई एस एल ने है तोडा
शब्दों की ताकत को
संकेतों (SIGNS) ने पीछे छोड़ा .
( आई एस एल - Indian Sign Language)
हाल ही में मैंने राष्ट्रीय श्रवण विकलांगता संस्थान (एन आई एच एच ) से मूक बधिर लोगों की भारतीय सांकेतिक भाषा का ए स्तर का प्रशिक्षण प्राप्त किया है। इस दौरान मैंने अनुभव किया कि केवल संकेतों के सहारे भी जीवन कैसे जिया जा सकता है। यह कविता हमारे आई इस एल टीचर्स को समर्पित है जिन्होंने हमें इस सांकेतिक भाषा का प्रशिक्षण दिया। उनका बहुत बहुत आभार .