Tuesday, December 9, 2014








लब  खामोश हैं 

कौन कहता है कि
बोलने के लिए
कुछ कहने के लिए
शब्दों की है जरुरत

यहाँ तो बिन बोले ही
बिना कुछ कहे ही
एक लम्बी सी
गुफ्तगू हो जाती है

चेहरे के ये भाव
आते हैं जाते हैं
सारा हाल बताते हैं
शब्द ठगे से रह जाते हैं

ये आँखें हैं
मन का आईना
तुम कुछ ना  कहो
ये सब कह जाती हैं

शब्दों को था गुमान
बिन हमारे न बोल पाओगे
यदि हम दें न साथ
कुछ जान नहीं पाओगे

मिथ्या था ये भरम
आई एस  एल  ने है तोडा
शब्दों की ताकत को
संकेतों (SIGNS) ने पीछे छोड़ा  .

( आई एस एल  - Indian Sign Language)
हाल ही में मैंने राष्ट्रीय श्रवण विकलांगता संस्थान (एन  आई एच एच ) से मूक बधिर लोगों की भारतीय सांकेतिक भाषा  का ए  स्तर  का  प्रशिक्षण प्राप्त किया है।  इस दौरान मैंने अनुभव किया कि केवल संकेतों के सहारे भी जीवन कैसे जिया जा सकता है।  यह कविता  हमारे आई इस एल  टीचर्स  को समर्पित है जिन्होंने हमें इस सांकेतिक भाषा का प्रशिक्षण दिया।   उनका बहुत बहुत आभार  .