Monday, April 26, 2010

लड़कियां

हमसे है रौनक जहाँ की
शोभा हमसे बागवां की
हम भोर की हैं रश्मियाँ
हम बेटियां, हम लड़कियां ।

गौरेया सी फुदकती
मैया के आँचल में
कोयल सी चहकती
भैया के प्रांगण में ।

छोटी सी हीरे की कनी
आँगन बुहारती बाबुल का
कली से भी कोमल है जो
चौबारा संवारती बाबा का ।

हमसे है सृजन सृष्टि
पोषण हमीं से
हमसे है ममता वत्सल
नेह वृष्टि हमीं से ।

घूँघट की आड़ में
घर में रंगोली भरती
यदि पंख पसार दिए
तो सैर चाँद की करती ।

पत्नी सा विश्वास भरा
रोमांच प्रेयसी सा छलके
पृथ्वी सी सब किये समाहित
दया क्षमा धीर शील बनके ।

एक छोटी सी चिंगारी
या नभ कड़काती दामिनी
आफताब कहो या सुर्ख गुलाब
या मीत, मधुर, मधुयामिनी ।

14 comments:

  1. हमसे ही सारी खुशिया, हम बाबुल की देहरी
    भाई की रखी, मैया की ख़ुशी, ससुराल की लाज
    .........और बहुत कुछ अनकही सी बात

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  2. आफताब कहो या सुर्ख गुलाब
    या मीत, मधुर, मधुयामिनी ।
    माधुर्य घोल दिया ---

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  3. kavita badhaia hai.par ladkion devi bhav say nawajnay kai bajai unsay samanta ka vyavhar kiya jaye to behtar ho .

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  4. गौरेया सी फुदकती
    मैया के आँचल में
    कोयल सी चहकती
    भैया के प्रांगण में ।

    behtareen rachna hai !

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  5. एक छोटी सी चिंगारी
    या नभ कड़काती दामिनी
    आफताब कहो या सुर्ख गुलाब
    या मीत, मधुर, मधुयामिनी ।
    बहुत कुछ कहती, पूरा जीवन वृतांत बखानती कविता

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  6. "मीत, मधुर, मधुयामिनी" BEHAD SUNDER CHITRAN ,BEHAD SUNDER BHAV,SNEH GAGAR CHALKATI SI,EK NAI RAH DIKHLATI SI.BHAV KE STER PAR BEHAD SAMVEDANSHEEL PRASTUTI.

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  7. " घूँघट की आड़ में
    घर में रंगोली भरती
    यदि पंख पसार दिए
    तो सैर चाँद की करती । "
    लडकियों में जीवन की संभावनाए छिपी हैं... घर से गगन तक... वे पहुँच रही हैं... समग्रता से उन्हें देखा है.. बढ़िया कविता.. सुंदर !

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  8. एक छोटी सी चिंगारी
    या नभ कड़काती दामिनी
    आफताब कहो या सुर्ख गुलाब
    या मीत, मधुर, मधुयामिनी ।
    बहुत कुछ समेटा है आप ने इस रचना में - बधाई

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  9. आपकी कविता की शुरूआत अच्‍छी है लेकिन धीरे-धीरे शब्‍द भारी पड़ने लगे हैं भाव पर और कविता जहॉं से शुरू हुई थी वहॉं से दूर होती गयी। आपकी और कवितायें भी पढ़ीं, अच्‍छा लेखन है अच्‍छा शब्‍द प्रयोग है। मेरे एक कवि मित्र की पंक्तियॉं याद आती हैं कि:
    कवि हूँ,
    कविता से प्‍यार किया करता हूँ
    घड़ता हूँ शब्‍दों की मूरत,
    भावों की छैनी से श्रंगार किया करता हूँ।
    शब्‍द मूरत का रूप तो दे सकते हैं लेकिन काव्‍य में भाव का महत्‍व शब्‍द से उपर है और शब्‍द भले ही सरल हो जायें, भाव कमज़ोर नहीं पड़ना चाहिये।

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  10. Bahut sundar bhavon ki abhivayakti...bahut2 badhai..

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  11. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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  12. घूँघट की आड़ में
    घर में रंगोली भरती
    यदि पंख पसार दिए
    तो सैर चाँद की करती

    bhai maza aa gaya aapke shabdo se aapke nazeriye se dekha ....

    larkiya tu vo chirag hai bhi hongi roshni hi dengi...

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  13. बहुत अच्छी रचना, आज इधर आया बहुत दिन बाद तो पढ़ी। पहले तारीफ़ और बधाई स्वीकारें, फिर थोड़ी सी नुक्ताचीनी भी - आशा है सहज स्वीकारेंगे।
    इस विष्य पर कहन का कोई अंत नहीं है, पर रचना छोटी होती तो और प्रभावी होती, हॉण्ट करती।
    अभी यह रचना अपना जादू खो देती है, आकार तले।
    मगर हैं भाव उत्तम!
    शुभेच्छु,

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  14. कुछ भी काट कर छोटा करने लायक़ नहीं है, बस इतना होता कि पहले चार पद एक बार प्रकाशित करते, और शेष आगे, कुछ अन्तराल पर। रचना पूरी ही अच्छी है।

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