Tuesday, April 20, 2010

गेहूं की बालियाँ

सुनहरी सुनहरी
गेहूं की बालियाँ
जैसे भू पर सजी हों
सोने की थालियाँ ।

ये मेहनत हमारी कि
लरजकर लहरायें
है हिम्मत हमारी कि
रज से रजत उपजाएँ ।

स्वास्तिक है यह
हमारी खुशहाली का
समृद्धि का वैभव का
हर दिन दिवाली का ।

पक जाएँ जब
गेहूं के ये छंद
उत्सव मनाएं
सभी संग- संग ।

संजीवनी सी महके
सरसों लेती अंगड़ाई
कुंदन सी खिली बालियाँ
करती गुंजन संग पुरवाई ।

पगडण्डी और मेड़ो से
खलिहान तक का सफ़र
तुम्हारे लिए लाती
ओढ़नी में संजोये , भरी दोपहर ।

जीवंत हो उठे हैं
वो मोहक से पल
तुम खेतों के बीच
और मैं निकट हल ।



10 comments:

  1. Hi, just visited your blog first time, and found it quite interesting. Nice post indeed. Thanks for sharing it to all
    Regards
    Prabhat
    Carpet Cleaning NY

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  2. बहुत बेहतरीन भाव है

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  3. संजीवनी सी महके
    सरसों लेती अंगड़ाई
    कुंदन सी खिली बालियाँ
    करती गुंजन संग पुरवाई ।

    बहुत उम्दा रचना है..आपकी रचनाये बहुत सहज होती है
    आपकी हर रचना ओस की पहली बूंद सी ताज़गी लिए होती है...

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  4. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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  5. gehun ki baliyan , lahrati baliyon se bhaw...bahut mohak lage

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  6. mere bhav ko parbhav dene wale aap hain kaun ???...koi parichay to milta nahi hai..!!rchna sunder hai...!!!

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  7. सुंदर प्रस्तुति। यहाँ पहली बार आया, सार्थक लगा आना।
    आपके प्रतिमान और शब्द - चयन अनूठे हैं।
    सोने की थालियाँ और रज से रजत उपजाने का प्रयोग अत्यंत प्यारा लगा।
    बधाई एक अच्छी रचना के लिए।

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  8. स्वास्तिक है यह
    हमारी खुशहाली का
    समृद्धि का वैभव का
    हर दिन दिवाली
    बहुत अच्छी प्रस्तुति, हृदयस्पर्शी

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  9. ये मेहनत हमारी कि
    लरजकर लहरायें
    है हिम्मत हमारी कि
    रज से रजत उपजाएँ ye mehanat hamri ,sach kaha in sunahari baliyon ke peechhe chhupi kisan aur majdor ki mehanat hi inhe sunahara rang deti hai..vo sunahara rang jo kisi factory me banaya nahi ja sakata,aur is rang ki chamak ko maathe par mehanat kano ko chamkane vala hi mahsoos kar sakata hai,ya koi samvedansheel insan,behatreen rachana.sundar bhav.

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