ख्वाहिशें
ख्वाहिशों का मोहल्ला
बहुत बड़ा होता है
बेहतर है, मुड़ जाएँ हम
जरूरतों की गली में |
जरूरतों की गली
के उस छोर पर
कहीं मिल न जाए
कोई खोई सी ख्वाहिश
इन्तजार में |
जरूरतों की डोर
तो है अपने हाथ
कभी थोड़ी सी ढील
कभी कसाव जरा सा |
ख्वाहिशें हैं इक
ख्वाब खूबसूरत सा
गर हो जाए मुकम्मल
लगे सारा जहाँ अपना सा |
ख्वाहिशों को भी
है हक़ कि नजरों में आए
ना कि दफ़न हो जाए
किसी के दरिया ए दिल में |
ख्वाहिशें भी
बेहद जरुरी हैं
गर ये न हो हमसफ़र
तो जिंदगी अधूरी है |
ए हुजूर,
यूं मुँह न मोड़िए
इन ख्वाहिशों से
ये तो अपना ही साया है
इनसे नाता तो जोड़िए |
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गहन भाव लिए सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर।
वाह!बहुत खूब ।
ReplyDeleteव्वाहहहहहह
ReplyDeleteसुंदर ! जरूरतें पूरी करने के बाद ही ख्वाहिशों की बारी आती है, अक्सर जरूरतें ख्वाहिशों पर हावी हो जाती हैं।
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