Wednesday, June 30, 2010

गौरैया

चीं चीं स्वर ने मुझे जगाया
भोर हुई गौरैया ने बताया
मेरे घर आँगन के कोने
लचक डाल पर नीड़ बनाया ।

तिनका तिनका चुन लाती
सजाती अपना रैन बसेरा
चूजों से खूब लाड लड़ाती
उड़ जाती जब होता सवेरा ।

चोंच में दाना भरकर लाती
माँ को देख पुलक वे जाते
मुख से मुख लगा खिलाती
गर होते पंख वे उड़ जाते ।

भर लो तुम ऊंची उड़ान
धरा पर आना ही होगा
पंख पसारो चाहे जितने
संध्या लौटना ही होगा ।

अचानक एक तूफ़ान उठा
वायु क्रोध से पेड़ हताहत
घरोंदा रहा न गौरैया का
उजड़ा था घर बार किसी का ।

आओ फिर से वृक्ष लगाऊं
तुम्हारी उस पर ठौर बनाऊं
दुःख अपना तुम मुझे बताओ
आओ मेरे गले लग जाओ ।

गौरैया तुम मत घबराना
जीवन की है रीत यही
कुछ खोना है कुछ पाना
नियति देती है सीख यही ।

रोज एक मीठा गीत सुनाना
दूर देश की सैर को जाना
साँझ ढले जब लौट के आना
मेरे प्रिय का संदेसा लाना ।

6 comments:

  1. बहुत सुंदर भाव है एक आशावादी एक सीख प्रदान करने वाला एक बाल काव्य , जो अपने ले अपनी मासूमियत से बरबस अपनी और पढने को खीच लेता है , एक कहानी कह दी , सुंदर !
    साधुवाद

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  2. सीधे सादे शब्‍दों में ये सीधी सादी बात
    कविता सुंदर भाव लिये है इक मीठी सौगात।

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  3. सुन्दरतम भाव!! उम्दा रचना!

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  4. गौरैया तुम मत घबराना
    जीवन की है रीत यही
    कुछ खोना है कुछ पाना
    नियति देती है सीख यही ।
    bahut badhiyaa

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  5. रोज एक मीठा गीत सुनाना
    दूर देश की सैर को जाना
    साँझ ढले जब लौट के आना
    मेरे प्रिय का संदेसा लाना ।

    sehajta apni kaviton ki ke umda khubi hai, mann moh leti hai ye sehj likhayi..

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  6. गौरैया ! सुनकर ही मन रोमांचित हो उठता है.. मन में नया भाव जग जाता है... ऊपर से इतनी सुंदर गति... इतने प्रिय शब्द... बहुत सजीव... बहुत सहज...

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