Monday, June 14, 2010

चन्दा

ऐ चन्दा ! तुम आज रात
हमसे मिलने आ जाना
चाँदी सी धवल डोरियाँ
आँगन में बिसरा जाना ।

सूनी रातों के साक्षी तुम
हमें निहारा करते हो
बैरन बदली की ओट ले
कुछ समझाया करते हो ।

नागिन सी काली रात
काटे से नहीं कटती है
आओ हम तुम बतलाएं
गमगीन है वो भी कहती है ।

मेरा यह पैगाम तुम्हें
उन तक पहुँचाना ही होगा
याद में उनकी मीरा हो गई
अब तो आना ही होगा ।

तारों की बारात लिए
तुम कितना इतराते हो
रंगहीन जीवन पर मेरे
क्या आंसू नहीं बहाते हो ।

ताप विरह की अधिक सताए
थोड़ी शीतलता भर देना
मिलूं जब अपने साजन से
मुट्ठी भर मादकता दे देना ।

11 comments:

  1. "ताप विरह की अधिक सताए
    थोड़ी शीतलता भर देना
    मिलूं जब अपने साजन से
    मुट्ठी भर मादकता दे देना ।"... बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर नई कविता आये है... और ए़क सुंदर कविता... खास तौर पर अंतिम पंक्तियाँ... चाँद से मादकता मांगना... नया प्रयोग है... शुभकामनाओं सहित

    ReplyDelete
  2. मेरा यह पैगाम तुम्हें
    उन तक पहुँचाना ही होगा
    याद में उनकी मीरा हो गई
    अब तो आना ही होगा ।

    virah aur yaad ke bhav ko bahut umda dhang se prastut kiya gaya hai...

    ReplyDelete
  3. मेरे भाव की कविता रोमानी भाव बोध को दर्शाती है.कवि का नाम क्या है?अच्छी कविता है .बधाई.

    ReplyDelete
  4. कविता अच्छी लगी।

    ReplyDelete
  5. सूनी रातों के साक्षी तुम
    हमें निहारा करते हो
    बैरन बदली की ओट ले
    कुछ समझाया करते हो ।
    ......sunder prastuti...

    ReplyDelete
  6. कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई

    ReplyDelete
  7. behad romantic,behtareen imagery,sunder bhaw sampreshan.

    ReplyDelete
  8. ताप विरह की अधिक सताए
    थोड़ी शीतलता भर देना
    मिलूं जब अपने साजन से
    मुट्ठी भर मादकता दे देना ।
    sunder pranay , achcha virah chitran kiya hai ,
    adhuwad

    ReplyDelete