चीं चीं स्वर ने मुझे जगाया
भोर हुई गौरैया ने बताया
मेरे घर आँगन के कोने
लचक डाल पर नीड़ बनाया ।
तिनका तिनका चुन लाती
सजाती अपना रैन बसेरा
चूजों से खूब लाड लड़ाती
उड़ जाती जब होता सवेरा ।
चोंच में दाना भरकर लाती
माँ को देख पुलक वे जाते
मुख से मुख लगा खिलाती
गर होते पंख वे उड़ जाते ।
भर लो तुम ऊंची उड़ान
धरा पर आना ही होगा
पंख पसारो चाहे जितने
संध्या लौटना ही होगा ।
अचानक एक तूफ़ान उठा
वायु क्रोध से पेड़ हताहत
घरोंदा रहा न गौरैया का
उजड़ा था घर बार किसी का ।
आओ फिर से वृक्ष लगाऊं
तुम्हारी उस पर ठौर बनाऊं
दुःख अपना तुम मुझे बताओ
आओ मेरे गले लग जाओ ।
गौरैया तुम मत घबराना
जीवन की है रीत यही
कुछ खोना है कुछ पाना
नियति देती है सीख यही ।
रोज एक मीठा गीत सुनाना
दूर देश की सैर को जाना
साँझ ढले जब लौट के आना
मेरे प्रिय का संदेसा लाना ।
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बहुत सुंदर भाव है एक आशावादी एक सीख प्रदान करने वाला एक बाल काव्य , जो अपने ले अपनी मासूमियत से बरबस अपनी और पढने को खीच लेता है , एक कहानी कह दी , सुंदर !
ReplyDeleteसाधुवाद
सीधे सादे शब्दों में ये सीधी सादी बात
ReplyDeleteकविता सुंदर भाव लिये है इक मीठी सौगात।
सुन्दरतम भाव!! उम्दा रचना!
ReplyDeleteगौरैया तुम मत घबराना
ReplyDeleteजीवन की है रीत यही
कुछ खोना है कुछ पाना
नियति देती है सीख यही ।
bahut badhiyaa
रोज एक मीठा गीत सुनाना
ReplyDeleteदूर देश की सैर को जाना
साँझ ढले जब लौट के आना
मेरे प्रिय का संदेसा लाना ।
sehajta apni kaviton ki ke umda khubi hai, mann moh leti hai ye sehj likhayi..
गौरैया ! सुनकर ही मन रोमांचित हो उठता है.. मन में नया भाव जग जाता है... ऊपर से इतनी सुंदर गति... इतने प्रिय शब्द... बहुत सजीव... बहुत सहज...
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