Monday, June 21, 2010

तस्वीर

तस्वीर बसी इन आँखों में
जिधर देखती तुम ही हो
छवि निरंतन तैर रही
फिर क्योंकर इतना रूठे हो ।

गुजर गए कितने सावन
तेरी आस में याद नहीं
बेकरारी ये भी मनभावन
अपनी कुछ परवाह नहीं ।

बाहों की रेशम पुष्प डाल
कुछ अनमन और गुमसुम सी
भाग्यविधाता क्या दोष मेरा
मैं क्यों हूँ खोई खोई सी ।

सपनों में तस्वीर बनाऊं
नित लगती है नई नई
उससे घंटों बातें करती
मन भरता है कहीं नहीं ।

तस्वीर में उतरा अक्स मेरा
मानो मेरी परछाईं है
लगता नहीं दूर हो तुम
यादों की बदरी छाई है ।

4 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर भाव।

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  2. भावमयी रचना.........."

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  3. बाहों की रेशम पुष्प डाल
    कुछ अनमन और गुमसुम सी
    भाग्यविधाता क्या दोष मेरा
    मैं क्यों हूँ खोई खोई सी ।

    umda rachna hai...

    I would be obliged if you would check my interpretation of "tasverein "

    http://rajatnarula.blogspot.com/2010/01/tasveerein.html

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  4. "तस्वीर में उतरा अक्स मेरा
    मानो मेरी परछाईं है
    लगता नहीं दूर हो तुम
    यादों की बदरी छाई है । "

    आम तौर पर आपकी कविताओं की अंतिम पंक्तिया बेहद जज्बाती होते हैं.. दिल को छु जाते हैं... सुंदर कविता.. बहुत बढ़िया !

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