Tuesday, June 15, 2010

दुआ

उठे जो हाथ
दुआ के लिए
उसमें
तुम ही तो थे ।

ईश्वर से माँगा
थोड़ा सुकून
तुम्हारे
लिए ही तो था ।

झुक गया
मेरा सर्वांग
तुम्हें
और ऊंचा
उठाने के लिए ही ।

झोली अपनी
फैला दी
मैंने
तुम्हें
पाने के लिए ही ।

आरजू की
हो पाऊं दृढ
तुम्हें
हर बला से
बचाने के लिए ही ।

हसरत थी
कुछ मांगू
उनसे
बिन मांगे ही
मिल गया सब ।

तुम जो मिल गए ।

2 comments:

  1. झुक गया
    मेरा सर्वांग
    तुम्हें
    और ऊंचा
    उठाने के लिए ही ।

    samarpan ka bhav ujagar karti ek uttam rachna , nehswarth nishchal prem ko darshati ek komal rachna...

    ReplyDelete
  2. किसी के लिए क्या कोई इतनी शिद्दत से दुआ कर सकता है.. सोच कर अच्छा लगा.. बहुत भाव्ब्पूर्ण .. बहुत अपने पन से लिखी गयी कविता...

    ReplyDelete