Sunday, May 30, 2010

कोयल

अमराई के झुरमुट में
कोकिल गाये मीठा कितना
पथिकों के पद थम जाए
आमों में भरती रस कितना ।

मौसम की पहली बारिश
उसकी याद दिलाती है
तू क्या जाने पगली कोयल
मन कितना तड़पाती है ।

कंठ में रहे छिपाए
भरपूर कसक का प्याला
बैरन तुम बिरहन की
परदेश बसा है मतवाला ।

कारी कोइलिया
बसो मोरे अंगना
कुहू कुहू करना
जब आयेंगे सजना ।

3 comments:

  1. कूक लगती
    हूक है
    मन में बसी है।

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  2. ......तू क्या जाने पगली कोयल
    मन कितना तड़पाती है ।
    sunder rachna....prabhvshali panktiyan.......

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