वर्षों के इन्तजार से जूझे
गृहप्रवेश का दिन आया
एक घरौंदे की आस मुझे
आज बहुत मन हर्षाया ।
तिनका तिनका जोड़ा हमने
अपना भी एक घर होगा
घर आँगन बगिया महकेंगे
खुशियों का रैन बसेरा होगा ।
छोटा सा अपना यह घर
कितना अपनापन लिए खड़ा
आओ मुझमें रच बस जाओ
स्वागत को उत्सुक रहे खड़ा ।
नीड़ मेरा पहचान मेरी
निज निजता बसती है इसमें
साथी मेरे सुख दुःख का
सपनों की दुनिया है जिसमें ।
नीले नभ की छावं तले
जग में यही ठौर भाये
दीवारों में एहसास पले
जीवन हर कोने बस जाये ।
इस द्वार से आयें मनभावन
गंगा जल से पैर पखारूँ
राह में पलकें बिछवा दूं
सबसे अनमोल चीज मैं वारूँ ।
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bahut hi bhawpurn
ReplyDeleteaanandam...aanandam khaas sabhi ghar banaane ki haud men nahi lage to. jeewan ko thoda saa aaraam milegaa.
ReplyDeleteसुन्दर कविता .सीधी-सादी,अपनी बात को पाठकों तक पहुंचाती.
ReplyDeleteनीड़ मेरा पहचान मेरी
ReplyDeleteनिज निजता बसती है इसमें
साथी मेरे सुख दुःख का
सपनों की दुनिया है जिसमें ।
पहली बार आपके रचना संसार से रूबरू हुआ. बहुत अच्छा लगा.
प्रभावी शब्द चयन, अच्छा रूपक ..
सादर
Kitne sundar ahsaas hain!
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