Monday, May 17, 2010

तुम्हारी चूड़ियाँ

तुम्हारी चूड़ियों के जुगनू
मुझे रात भर जगाते हैं
तुम्हारी आँखों के सितारे
मेरे नयनों में झिलमिलाते हैं ।

आरजुओं की आंधी
मुझे उड़ा ले जाती है
तपते रेगिस्तान में
जलने को छोड़ जाती है ।

तुम्हारे गेसुओं के बादल
घुमड़ते गरजते हैं जरूर
मोती नेह के बरसाए बिना
गुजर जाते हैं लिए गुरूर ।

तुम्हारी हंसी की खनखनाहट
कानों में गुंजन करती है
युगल पंखुरी पर मुस्कान
स्पंदन ह्रदय में भरती है ।

प्रतीक्षा में तुम्हारी रहूँ विभोर
कल्पना सुवासित करती है
स्वर्णिम पल, तुम हो सम्मुख
यह सोच उल्लसित करती है ।

3 comments:

  1. आरजुओं की आंधी
    मुझे उड़ा ले जाती है
    तपते रेगिस्तान में
    जलने को छोड़ जाती है ।

    great composition!

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  2. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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