दूर डाल की फुनगी पर
कोयल ने छेड़ा एक गीत
स्वीकार बधाई हो मेरी
सखा मेरे, मय प्रीत ।
कस्तूरी से तुम महको
जीवन की मरू भूमि में
संतोष प्राप्त कर, अमर रहो
सुख दुःख की लुका छिपी में ।
खूब फलो, आगे बढ़ो
बस, कर्मठता ही गुण है
ईमान, सहोदर रहे तुम्हारा
यही सर्वदा सदगुण है ।
दूज चंद्रमा से तुम शीतल
सबकी आँखिन में बसते हो
अखंड दीप से , तुम रोशन
पर, दंभ नहीं तुम भरते हो ।
तरुवर ज्यों , लदा कंद से
नतमस्तक हो कहता है
सुस्ताओ दो पल, छाँव में मेरी
क्षुधा शांत भी करता है ।
मीठे पानी के निर्झर से
कल कल करके बहते हो
मंशाएं बलवती रहे तुम्हारी
जिसकी आस को पाला करते हो ।
लाभ कमाओ , यश बढे
उम्मीद बकाया न रहे
महालक्ष्मी और सरस्वती
दोनों पहलू में रहे ।
न दू में एक पुष्पगुच्छ
न कोई और उपहार
चिरायु यौवन रहे तुम्हारा
अक्षय , सदाबहार ।
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aapki kavitaaon mein geetaktamta aur vyanjana bahut sunder hote hain ! har kavita nai baangi liye hoti hai... jab duniya itni adhunik ho gai hai... emtions badal rahe hain... iss yug mein bhi aap itni sunder bhav-smapoorit kavitaayen likh rahi hain.. ye sunder baat hai...
ReplyDeleteन दू में एक पुष्पगुच्छ
न कोई और उपहार
चिरायु यौवन रहे तुम्हारा
अक्षय , सदाबहार ।
itni sunder kaamna aaj ke bhauti yug mein kaun karta hai... badhai ho !
shabd sanyojan ka kamaal mujhe jaishankar prasad ji ki yaad dila gaya.....waah
ReplyDeleteइस सदिच्छा से सुन्दर उपहार और क्या कोई अपने आत्मीय को दे सकता है...
ReplyDeleteअपने भावों को बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने...