Monday, January 18, 2010

कासे कहूँ

लिखने जो बैठे , अक्षर धुंधला गए
क्या लिखें, किस पर लिखें
हम ये धोखा खा गए ।

भाव कुछ आता नहीं
ठेंगा दिखाती है लेखनी
पेपर भी है मायूस
मेरी जुबानी ये मेरी कहानी ।

शर्मिंदा हों किस किस पर
खुद पर या जज्बातों पर
जो न रह सके खामोश
लरजकर लबों पर आ गए ।

न थे तुम ऐसे
न कभी सोचा था हमने
कैसा तूफान था, कि
शराफत छोड़ दी हमने ।

चल रहा अंतर में द्वन्द
पूरे दिन और रात है
खुद की है खुद से लड़ाई
जीत खुद की और खुद ही की हार है ।

इसका प्रायश्चित करें कैसे
जो हमने , निज तज भूल की
समेटे अपने डैनों को , कि
मुक्त उड़ने की भूल की ।

नादाँ इतने भी नहीं थे हम
जो मन को पढ़ न पाए हम
हुई है हमसे गुस्ताखी
कि माफ़ खुद को कर पाएंगे हम ।

3 comments:

  1. kissi ke pyar mein dub kar likhi gai kavita hai... bhawnaon par kaabu rakhne ki jaddojehad hai iss kavita mein.... dwand ki itni sunder abhivyakti... bahut khoob...

    dua hai ki aap aur likhen khoob likhen !

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  2. नादाँ इतने भी नहीं थे हम
    जो मन को पढ़ न पाए हम
    हुई है हमसे गुस्ताखी
    कि माफ़ खुद को कर पाएंगे हम ।
    Bahut khoob!

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  3. हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें

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