यो चातक के जैसे मुझे न निहारो
मैं अभिलाषा तुम्हारी, नेह मुझ पर वारो ।
सम्मोहन सा बंधन, ये अनजानी सी डगर
कहाँ इसकी मंजिल, है किसको खबर ।
दिल में बसाये जाते हो किधर
कुछ तो बोलो , जरा आओ इधर ।
ये प्रेम पगडण्डी, चलना इस पर भारी
नहीं है सरल, है तलवार दोधारी ।
मेरी रह-गुजर पर , यो दौड़े चले आये
हथेली पर रख कर दिल, नजराना लिए आये।
"ये प्रेम पगडण्डी, चलना इस पर भारी
ReplyDeleteनहीं है सरल, है तलवार दुधारी ।"
sunder rachna ! prem ke dwand ko pradarshit karti yeh rachna ! sunder bhav !