मलिन हुआ क्यों दप-दप मुखड़ा
नैनो में ख़ामोशी छाई
लब भी थोड़े चुप-चुप से है
क्यों घटा उदासी की छाई ।
अल्हड लट है शांत हुई
मन का उद्वेग थमा सा है
मेरी बातों से हुए हो आहत
क्या बोल मेरा खंजर सा है ।
डर था मुझको इसी बात का
जो अब है प्रत्यक्ष हुआ
ह्रदय पाट नहीं खोले अभी
बस एक झरोखे से यह हाल हुआ ।
मेरे अंतर में लगा के गोता
जब तुम बाहर आओगे
दूर देश बस जाओगे
फिर निकट नहीं तुम आओगे ।
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बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteprem ke kai charno ko apni kavita mein samavesh kiya hai aapne... milan, bhay, aashanka, virah ... sabhi bhav aapki iss kavita mein hai...
ReplyDeletegeyta aapki anya kavitaon ki tarah taazi hain...vasant ritu mein ek madhumay kavita ke liye badhai !
valentine day par ye rachana Arunji? sunder rachana.
ReplyDeletebaut badhiya
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