(ख्यातिप्राप्त चित्रकार मंजीत सिंह जी का चित्र वियोगिनी यशोधरा -साभार ) |
यशोधरा सी एक नारी
बनी कुंवर की वामांगी
महलों की थी राजदुलारी
आज बनी विरह की मारी
फूलों का गलियारा चलते
कदम जहाँ थक जाते थे
सारे सुख वैभव मंडराते
राहों में बिछ जाते थे
कामदेव सा पुरुष मिला
सिद्धार्थ नाम कहाते थे
राजप्रसाद में पुष्प खिला
सब बलिहारी जाते थे
नाजों के पाले हुए कुमार
देखी न दुःख की छाया
जर्जर देह न दिखा बुखार
वैभव की कुछ ऐसी माया
लचक लता सी महारानी
अहोभाग्य मनाती थी
विधना के मन की न जानी
फूलों की सेज सजाती थी
पति था उसका एक संत
जग को उसने सन्देश दिया
सारे सुखों का दिखा पंथ
मानवता पर उपकार विशेष किया
धन्य हुआ सारा संसार
गुणगान बुद्ध के हैं गाते
रनिवास में गूंगी हुई झंकार
सूखे पत्ते उड़ हैं आते .
कितना विरोधाभास है दोनों स्थितियों में।
ReplyDeleteबेहद उम्दा प्रस्तुति।
ReplyDeleteक्या कहने
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteकामदेव सा पुरुष मिला
ReplyDeleteसिद्धार्थ नाम कहाते थे
राजप्रसाद में पुष्प खिला
सब बलिहारी जाते थे
........ बहुत सच लिखा आपने.
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
marmsparshi!!
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteयशोधरा की व्यथा को समझना जग के लिए आसान नहीं है....
ReplyDeletebahut sundar mamrsparshi prastuti..
ReplyDeleteभावना प्रधान नारी चित्रण.....
ReplyDeleteआदरणीया
ReplyDeleteसादर नमन
यशोधरा की इस चित्र को मैं भी अपनी रचना के कवर पेज पर लेना चाहता हूँ. क्या चित्रकार का पता अथवा फोन न. / मेल आइडी मिल सकता हैं. क्या आपने उनसे अनुमति ली थी?
नेट पर pata/आइडी नहीं मिल पा रहा हैं. आपकी मदद चाहता हूँ. यशोधरा को ऑफर बनाकर एक कव्य कृति तैयार किया हैं. उसके लिए यह सर्वधिक उपायुक्त हैं.
आभार. और नमन एकबार पुनः
मेरा न. 9450802240, 9453391020
जयप्रकाश तिवारी